॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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संस्कृत तथा हिन्दी कवि, लेखक, शास्त्रों के अध्येता तथा प्रवाचक

आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी

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आचार्यश्री डॉट इन पर आपका हार्दिक स्वागत है। यह पं. कौशलेन्द्रकृष्णशर्मा जी का आधिकारिक जालकेन्द्र है, जिसका उद्देश्य उनके लेखों तथा कृतियों को संरक्षित करना तथा सुहृदों से संपर्क करना है।

 

कथा के कुछ अंश

श्लोकधारा आदि नए बिन्दु

चित्रमाला

पं. श्री कौशलेन्द्रकृष्ण शर्मा

पं. श्री कौशलेन्द्रकृष्ण शर्मा छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में शाकद्वीपीय मग ब्राह्मण परिवार से उद्भूत हैं। भगवान् आदित्य के प्रति इनकी अगाध श्रद्धा है। माता महाश्वेता की कृपा से इन्हें संस्कृत भाषा का ज्ञान हुआ। बचपन से ही सनातन शास्त्रों में इनकी रुचि तो रही ही है। पिताश्री से इनका शास्त्राध्ययन निरंतर चलता रहता है। इन्हें संस्कृत, हिन्दी, आंग्ल तथा छत्तीसगढी का ज्ञान है। उन्होंने अलौकिक रूप से श्रीराधा जी को अपनी आचार्या माना है अतएव नामाग्र में “आचार्यश्री” लिखते हैं….

हमारे लेख

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शारदापराधक्षमापनम्

   रचयिता - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) सरससारससङ्कुलसंहित-स्थितिसुभाषितवैभवभूषिते।चिचरिषामि सुपादनखे वने-विविधवृक्षदलैर्दह मे मलम्॥१॥ सुन्दर कमल समूहों के निकट विद्यमान रहने वाले (हंस) के ऊपर स्थिति करने...

रमापराधक्षमापनम्

   रचयिता - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) कमलयमलचक्षुं यामलैर्वारणानांमहितचरणयुग्मं शुभ्रशोभां शुभाङ्गीम्।अतिललितकटाक्षो भूतयः सेवकानांकलितकुमुदमध्येऽधिष्ठितां तान्नमामि॥१॥ जिनके कमल की दो कर्णिकाओं जैसे नयन...

लोचनेश्वरीस्तुति

   रचयिता - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) नमामि ब्रह्मविष्णुशर्वसर्वमानसस्थितेद्रवप्रलिप्तलोचनप्रभेश्वरीं जगन्मये।तव भ्रुवो भ्रमन्ति देवदैत्ययक्षकिन्नरा-स्त्वया प्ररुह्य रान्ति तां नमामि केवलाम्बिके॥१॥ हे...

संन्यासियों तथा वानप्रस्थियों के पुनर्गृहस्थ होने तथा उनकी संततियों के विषय में शास्त्रपक्ष

   लेखक - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) प्रश्न: क्या संन्यासी या वानप्रस्थी पुनः गृहस्थ बन सकता है तथा पुत्र आदि उत्पन्न कर सकता है? चूँकि संन्यास में ब्राह्मण को ही अधिकार ("ब्राह्मणाः प्रव्रजन्ति" - जाबाल०,...

हनुमान् जी की वानर प्रजाति

   लेखक - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) कुछ लोगों का यह वक्तव्य होता है कि हनूमान् वानर तो थे, किन्तु वानर इत्युक्ति आदिवासियों के लिये ही प्रयुक्त होती है। कुछ जन कहते हैं कि हनूमान् की तो पूँछ भी...

प्राचीन भारतीय सभ्यता : वेदों की प्राचीनता

   लेखक - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) वेद सनातन धर्म के चार स्तंभ हैं। वेद वे वृक्ष हैं जिनसे वेदान्त, पुराण आदि शाखाएं उद्भूत होतीं हैं। समस्त शास्त्रों का मूल वेद ही है। वेदों से ही समस्त ज्ञान का...

प्राचीन भारतीय सभ्यता : आर्य प्रवास एक झूठ

   लेखक - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) हमारी भारत भूमि विविधताओं का देश है। संस्कृति से लेकर रूप, रंग में भी विविधता है। आदिकाल से इस भूमि को देवभूमि कहा जाता है। देवता भी जहाँ जन्म लेने के इच्छुक...

प्राचीन भारतीय सभ्यता : सिंधु घाटी का धर्म

   लेखक - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) हमारा भारत आज से नहीं, आदि से ही विविधताओं का देश है। यहाँ गांव गांव में प्रथाएं हैं वो भी परिवर्तन के साथ संजोई हुई। वहाँ के गीत, इतिहास आदि उनका ब्यौरा हम सब तक सुलभ...

हृदयस्थल के अंतः तल में

   लेखक - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) हृदयस्थल के अंतः तल मेंएक नाम नित गाता हूँ।राम राम की धुन को सुनकरशरणागत हो जाता हूँ।देवालय में निज आलय मेंनिर्जन वन के मेघालय में।लय में लय से मुक्त निलय मेंराम नाम लय...

दोषारोपण मन का मल

   लेखक - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) दोषारोपण मन का मल॥देह मृदानिर्मित घट धूसर।भोगे सुख दुःख स्वयं बनाकर॥पैर गिरे यदि हाथ का मुद्गर,क्रुद्ध कहाँ पर लक्ष्य लगाए बैठा आत्म सबल।दोषारोपण मन का मल॥इन्द्रिय चय...
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जनस्तु हेतुः सुखदुःखयोश्चेत् किमात्मनश्चात्र ह भौमयोस्तत्। जिह्वां क्वचिद् संदशति स्वदद्भिः तद्वेदनायां कतमाय कुप्येत्॥

 

– भागवतम्

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