लेखक – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी
(कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि)
बैठा हिन्दू राम राम बस कहता है।
राम धर्म से विस्मृत सा उल्टी धारा में बहता
हिन्दू राम राम बस कहता है।
वैदिक धर्मसूत्र से वंचित
पैशाची मन से जो संचित
चिन्तन से निर्मित पत्थर की मूर्ति पूजता रहता
हिन्दू राम राम बस कहता है।
वर्णाश्रम का मर्म भूलकर
ऐसों के भी चरण झूलकर
सत्ताधीशो के द्वारा जो बना पुजारी डहता
हिन्दू राम राम बस कहता है।
हिन्दू मत की अभिलाषा से
धर्मनिर्गतापेक्ष ग्रंथ के
नेता इत्वर से पा ध्वज को नित्य घुमाता रहता
हिन्दू राम राम बस कहता है।
अंग्रेजी से बुद्धि करे तर
यवनों के सूफी गीतों पर
रोमांचित हो आत्मतत्व अनभिज्ञ हुआ सा दहता
हिन्दू राम राम बस कहता है।
अहिभुज अर्भक शैलशृंग से
कुक्कुट डिम्भकदम्बक ही में
स्वत्व भूलकर विदिशाओं से दाना चुगता रहता
हिन्दू राम राम बस कहता है।
धर्म विमुख पर संत कलेवर
राजनीति के दूत ठगों पर
भेड़ों की उस धारा में वह नित्य डूबता बहता
हिन्दू राम राम बस कहता है।
सर्वधर्मसमभाव भाव में
समरसता के उस बहाव में
ईश्वर अल्ला तेरो नाम गीति को गाता रहता
हिन्दू राम राम बस कहता है।
Ati sunder evam vartaman samay ke liye uchit kavita , jay ho acharya kaushlendra Krishna ji Maharaj ki🙏