॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी

आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी ही इस पूरे जालपृष्ठ के स्वामी हैं। उनका वास्तविक नाम पं. श्री कौशलेन्द्रकृष्ण शर्मा है। वर्तमान समय में उनका निवास ग्राम सेन्हाभाठा, कवर्धा (छ.ग.) है। कौशलेन्द्र जी एक अध्येता, चिन्तक, वक्ता तथा संस्कृत और हिन्दी आदि भाषाओं के कवि हैं।

इनके लेख

तैं नइ जानच (लोकगीत)

तैं नइ जानच (लोकगीत)

   लेखक - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) तैं हा नइ जानच पोंगा फँसे हे तोर डोंगातैं नइ जानच।ये रे!तोर मोर काया माटी के संगी मोर!एही आवै जम्मो पोथी बेद के निचोरतैं हा नइ जानच।लाली पानी के तोर काया लपटाय!जिहाँ ले...

ख्वाब में आकर कन्हैया क्यूँ सताते हो?

ख्वाब में आकर कन्हैया क्यूँ सताते हो?

   लेखक - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) ख्वाब में आकर कन्हैया क्यूँ सताते हो?जो जगूँ तो यूँ ही कैसे भाग जाते हो?रुक के पल भर देख लो रे ऐ मेरे ज़ालिमराधिका के नाम की आँसू बहाते हो।ख्वाब में नित ही लबों को चूम...

विप्राष्टकम्

विप्राष्टकम्

   रचयिता - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) यस्याङ्घ्र्याभरणेन शोभिततमो लक्ष्मीप्रियः केशवोनित्यं वै मनुते वसन् फणधरस्यास्यां च दुग्धार्णवे।जायन्ते विविधाः प्रजा इह सदा क्षत्र्यादयो येन तद्वन्देऽहं प्रगतिश्च यस्य...

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