॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी

आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी ही इस पूरे जालपृष्ठ के स्वामी हैं। उनका वास्तविक नाम पं. श्री कौशलेन्द्रकृष्ण शर्मा है। वर्तमान समय में उनका निवास ग्राम सेन्हाभाठा, कवर्धा (छ.ग.) है। कौशलेन्द्र जी एक अध्येता, चिन्तक, वक्ता तथा संस्कृत और हिन्दी आदि भाषाओं के कवि हैं।

इनके लेख

संन्यासियों तथा वानप्रस्थियों के पुनर्गृहस्थ होने तथा उनकी संततियों के विषय में शास्त्रपक्ष

संन्यासियों तथा वानप्रस्थियों के पुनर्गृहस्थ होने तथा उनकी संततियों के विषय में शास्त्रपक्ष

   लेखक - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) प्रश्न: क्या संन्यासी या वानप्रस्थी पुनः गृहस्थ बन सकता है तथा पुत्र आदि उत्पन्न कर सकता है? चूँकि संन्यास में ब्राह्मण को ही अधिकार ("ब्राह्मणाः प्रव्रजन्ति" - जाबाल०,...

हनुमान् जी की वानर प्रजाति

हनुमान् जी की वानर प्रजाति

   लेखक - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) कुछ लोगों का यह वक्तव्य होता है कि हनूमान् वानर तो थे, किन्तु वानर इत्युक्ति आदिवासियों के लिये ही प्रयुक्त होती है। कुछ जन कहते हैं कि हनूमान् की तो पूँछ भी...

प्राचीन भारतीय सभ्यता : वेदों की प्राचीनता

प्राचीन भारतीय सभ्यता : वेदों की प्राचीनता

   लेखक - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) वेद सनातन धर्म के चार स्तंभ हैं। वेद वे वृक्ष हैं जिनसे वेदान्त, पुराण आदि शाखाएं उद्भूत होतीं हैं। समस्त शास्त्रों का मूल वेद ही है। वेदों से ही समस्त ज्ञान का...

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