॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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संन्यासियों तथा वानप्रस्थियों के पुनर्गृहस्थ होने तथा उनकी संततियों के विषय में शास्त्रपक्ष

संन्यासियों तथा वानप्रस्थियों के पुनर्गृहस्थ होने तथा उनकी संततियों के विषय में शास्त्रपक्ष

   लेखक – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) प्रश्न: क्या संन्यासी या वानप्रस्थी पुनः गृहस्थ बन सकता है तथा पुत्र आदि उत्पन्न कर सकता है? चूँकि संन्यास में ब्राह्मण को ही अधिकार (“ब्राह्मणाः...
हनुमान् जी की वानर प्रजाति

हनुमान् जी की वानर प्रजाति

   लेखक – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) मुख्य बिन्दु Toggle क्या वानर आदिवासी थे?समस्या प्रारम्भ कहाँ से हुई?हनुमान् जी की पूँछतो क्या हनूमान् वानरमात्र हैं?हनुमान् क्या हैं?किम्पुरुष कौन हैं?निष्कर्ष कुछ...
प्राचीन भारतीय सभ्यता : वेदों की प्राचीनता

प्राचीन भारतीय सभ्यता : वेदों की प्राचीनता

   लेखक – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) मुख्य बिन्दु Toggle धार्मिक परिपेक्ष्य से वेदों की उत्पत्तिआंग्ल परिपेक्ष्य से वेदों की उत्पत्तिबालगंगाधर तिलक के अनुसारआर्य प्रवासवेदों की प्राचीनतावेद मंत्रों के...
प्राचीन भारतीय सभ्यता : आर्य प्रवास एक झूठ

प्राचीन भारतीय सभ्यता : आर्य प्रवास एक झूठ

   लेखक – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) मुख्य बिन्दु Toggle सिंधु घाटी की सभ्यताआर्य प्रवास (या आर्य आक्रमण) का अर्थ तथा इसके विरोधियों की सोंचमैक्समूलर प्रभृति लोगों का औचित्यआर्य प्रवास पर भीमराव...
प्राचीन भारतीय सभ्यता : सिंधु घाटी का धर्म

प्राचीन भारतीय सभ्यता : सिंधु घाटी का धर्म

   लेखक – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) हमारा भारत आज से नहीं, आदि से ही विविधताओं का देश है। यहाँ गांव गांव में प्रथाएं हैं वो भी परिवर्तन के साथ संजोई हुई। वहाँ के गीत, इतिहास आदि उनका ब्यौरा हम सब तक...
क्या ज्येष्ठ के मरणोपरान्त स्त्री अपने देवर को स्वीकार करके अपना वैधव्य त्याग सकती है?

क्या ज्येष्ठ के मरणोपरान्त स्त्री अपने देवर को स्वीकार करके अपना वैधव्य त्याग सकती है?

   लेखक – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) वर्तमान समय में कुछ इतर जातियाँ हैं जो अग्रज के मरणोपरान्त अनुज को विधवा का पति स्वीकार लेतीं हैं। वस्तुतः हम इन रीतियों के विषय में कुछ कहना तो नहीं चाहते किन्तु...
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