॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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   लेखक – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी
   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि)

शुरू करने से पहले, यह लेख किसी भी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुचाने हेतु नहीं लिखी गई है बल्कि कुछ लोगों के उन वाक्यों का प्रत्युत्तर है जिसमें कि वे हिन्दुओं को लक्ष्य करते हैं।

आजकल सोशल मीडिया अत्यंत शक्तिशाली माध्यम है जिसका कि व्यक्ति उचित या अनुचित दोनो प्रकार से उपयोग करके प्रभाव प्राप्त कर सकता है। मुख्य रूप से Youtube, Facebook, Instagram, WhatsApp, Twitter आदि ही शीर्षस्थ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स हैं। इनमें कुछ समय से ऐसी बातें फैलाईं जा रहीं हैं कि हिन्दू बौद्ध मूर्तियों की पूजा करते हैं। यदि आप हिन्दू हैं तो ऐसे उत्तेजित करने वाले वीडियोज़ बार बार आपके समक्ष प्रस्तुत किये जाते हैं। गृहयुद्ध कराना ही इनका परम लक्ष्य है। ये चाहते हैं कि सब लड़ते रहें और ये धन बटोरें। ऐसें में लोगों के भ्रम को दूर करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है अतएव हम यह लेख लिख रहे हैं।

बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों के विरुद्ध कई स्वयं को बौद्ध कहने वाले हमारे भारत में अनेक मतों को स्वतंत्रता प्राप्त है। आदिकाल से ही यदि देवों का इतिहास प्राप्त है तो दानवों का इतिहास भी है। उसी प्रकार दर्शनों में यदि वैदिक दर्शन भी है तो चार्वाक आदि दर्शन भी हैं। उनमें से ही एक दर्शन बौद्ध दर्शन है। हालाकि इसके मतों की साम्यता वैदिक दर्शन (हिन्दू धर्म) से नहीं किन्तु इसके प्रवर्त्तक इसे शांतिप्रिय धर्म बताते हैं। अतएव यही हम भी मान लेते हैं। इनमें ही कुछ लोग हैं जो स्वयं को बौद्ध कहकर इस दर्शन की शांतिप्रिय प्रकृति को अन्यों हेतु संदिग्ध कर देते हैं तथा इसका अपमान करते हैं।

क्या हिन्दू मंदिर तथा मूर्तियाँ बौद्धों से ज़बरन लूटे गए हैं?

यदि कहीं भी किसी देवता की पद्मासनस्थ या सुखासनस्थ, निर्वाणासनस्थ मूर्ति मिल जाए तो ये लोग उसे बौद्ध ही कहते हैं। अब यहाँ तक हो गया कि कहीं भगवान् विष्णु की या सूर्यनारायण की मूर्ति मिले तो उसे भी बौद्ध देव अवलोकितेश्वर कह दिया जाता है। गणेश को गजमुख बुद्ध तथा सरस्वती आदि देवियों को भी ऐसी किसी बौद्ध देवियों से जोड़ दिया जाता है। यही अवस्था सहस्राब्दियों से प्रचालित हिन्दू मंदिरों की मूर्तियों के प्रति भी होती है। 

हमने स्वयं एक वीडियो देखा था जिसमें कि उत्खनन में सूर्यनारायण की सूर्यमुद्रा से सम्पन्न दोनों हाथों में कमलपुष्प धारण की हुई मूर्ति प्राप्त हुई जिसे यही तथाकथित बौद्ध अवलोकितेश्वर ही कह रहे थे। किन्तु उसे कोई भी पुरातत्व विशेषज्ञ दूर से देखकर भी बता सकता है कि यह सूर्यमूर्ति है। मंदिरों को भी कहा जाता है कि बौद्ध स्थापत्य से चुराई पद्धति से हिन्दुओं ने बनाया है। किन्तु स्वयं सोंचिये कि जो बौद्ध धर्म मूर्तिपूजा को पाखण्ड मानता हो, वह बौद्ध धर्म मूर्तियों को बनाएगा ही क्यों?

हो सकता है कि सजावट हेतु बनाया गया हो। किन्तु सजावट हेतु चतुर्भुज देवता, त्रिनेत्र या गजमुख मानव की मूर्तियाँ सम्मत प्रतीत नहीं होतीं जब ये गणेश आदि देवताओं के स्वरूपों को काल्पनिक कहते हुए कहते हैं कि किसीके मस्तक पर हाथी का सिर कैसे, या चार हाथ कैसे। और यदि सज्जा हेतु बनाना ही होता तो द्वारपाल, दासदासियों तक सम्मत लगता है।

यदि हम बौद्ध मूर्तियों के सनातनीकरण का प्रमाण ढूंढें तो कुछ ग्रामीण भोले जनों द्वारा पूजित बुद्धमूर्तियाँ प्राप्त हो सकतीं हैं किन्तु बड़े पैमाने पर इसका प्रमाण नहीं है। बल्कि हिन्दू मंदिरों का कालान्तर में बौद्धपरिवर्तन के प्रमाण अनेक प्राप्त हो जाते हैं जिनमें से एक प्रसिद्ध प्रमाण अंगकोर वॉट मंदिर है जो कि भगवान् विष्णु को समर्पित मंदिर था जिसे कि कालान्तर में बौद्ध मंदिर के रूप में परिणित कर दिया गया। आप चाहें तो इस बात की स्वयं पड़ताल कर सकते हैं।

हिन्दुओं के ऊपर ऐसे आरोप लगाने वाले लोग कई बार स्वयं किसी बौद्ध मूर्ति पर सिन्दूर भगवा लपेटकर फोटो खींचकर यूट्यूब आदि के माध्यम से हिन्दुओं को बदनाम करते हैं।

मूर्ति हिन्दू है कि बौद्ध, कैसे पहचानें?

अब सूर्य की बात तो सरल है, किन्तु प्रश्न उठता है कि गजमुख बुद्ध तथा गणेश में अंतर कैसे पहचानें? इसकी सीधी विधि है कि मूर्तियों के वक्षस्थल को देखें। यदि वहाँ यज्ञोपवीत दिखे तो समझ जाएं कि वह मूर्ति हिन्दू मूर्ति है। क्योंकि यज्ञोपवीत वैदिक धर्म का संकेत है न कि बौद्ध धर्म का।

हिन्दू स्थापत्य के प्राचीनतम प्रमाण

जब कोई व्यक्ति हिन्दू स्थापत्य पर किसी अन्य का कलेवर चढाने का प्रयत्न करे तथा वेदों की, पुराणों की प्राचीनता को भी नकार दे तो उनको तमिल संगम साहित्य पढ़ने का आदेश दें क्योंकि वहाँ हिन्दू मंदिरों के वर्णन हैं। जिसमें कि कांचीपुरं का एकाम्बरेश्वर मंदिर भी ख्यात है। यह संगम साहित्य तीसरी शताब्दी ई.पू. का है। इससे ही सब सिद्ध हो जाता है। और किसी विशेष प्रमाण की आवश्यकता नहीं।

कौन हैं ये छद्मबौद्ध?

हो सकता है इनकी पूरी टीम हो। कुछ छद्मबौद्ध, कुछ छद्महिन्दू तथा कुछ अन्यान्य गुटों में घुसे पड़े हों। क्योंकि सोशल मीडिया में हर प्रकार के वीडियोज़ भरे हैं। अब यह तो संदेह है, किन्तु हमें इसपर संदेह नहीं कि छद्मबौद्धों को आर्यजाति से समस्या है तदपि उन्हें यह चिन्तन करने में पीडा होती है कि बुद्धों की जातियाँ क्या थीं। क्या एक भी बुद्ध उनकी जाति में जन्मा? बौद्धों की आधिकारिक भाषा प्राकृत, पाली आदि कहीं आर्य भाषा तो नहीं क्योंकि विश्वभर के भाषा विशेषज्ञों ने इन भाषाओं को एक “Middle Indo-Aaryan Language Family” श्रेणी में रखा है जो कि इनको आर्य भाषाओं के रूप में ही निर्णीत करती है। इनकी परंपराएं बौद्धों से सम्बद्ध नहीं हैं। इनकी परंपराएं हिन्दू धर्म से प्रेरित हैं, जिस धर्म की उन्ही परंपराओं को ये पाखण्ड कहते हैं। ये स्वयं हिन्दू परंपराओं का हाइब्रिड बनाकर अपनाते हैं किन्तु चोर हिन्दुओं को बोलते हैं। यदि हिन्दू बालक गुरुकुल जाए तो ये उसे स्कूल जाने की हिदायत देते हैं, ब्राह्मणों को भिखारी तक कहते हैं किन्तु…. नीचे कुछ चित्र स्वयं देखें…

निष्कर्ष

हिन्दुओं की मूर्तियाँ, मंदिर किसी भी प्रकार से बौद्धप्रेरित नहीं हैं न ही लूटीं या चुराईं गईं हैं। जबकि छद्मबौद्धों के ये प्रयास केवल गृहयुद्ध को साधकर किये गए उद्यम हैं। बौद्धों तथा हिन्दुओं को चाहिये कि ऐसे लोगों से बँचे। यदि बौद्ध शांतिप्रिय धर्म है तो ये छद्मबौद्ध वास्तविक बौद्धों के सबसे बड़े शत्रु हैं। इसका बौद्धों को ध्यान रखना चाहिये तथा ऐसे लोगों की संगति से बँचना चाहिये।

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