॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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   लेखक – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी
   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि)

लोगों के मन में यह प्रश्न तब से है जब से वे भाषा का अध्ययन कर रहे हैं। जनमानस में संस्कृत ही सबसे प्राचीन भाषा है किन्तु भ्रामक आर्य प्रवास प्रभृति व्याख्याओं के बाद से लोगों के मध्य प्राचीन भाषा की उपाधि को प्राप्त करने हेतु तमिल, पाली जैसी भाषाएं भी संस्कृत की प्रतिद्वन्द्वी भाषाओं के रूप में समक्ष प्रस्तुत होतीं हैं। तमिल संस्कृत का शक्तिशाली प्रतिद्वन्द्वी सिद्ध होता है। पाली को तो संस्कृत भाषा की जाति का ही माना जाता है जबकि पाली समर्थकों का कथन है कि संस्कृत पाली से ही उत्पन्न हुआ है। आज इन समस्त चर्चाओं के माध्यम से हम यह मंथन करने का प्रयत्न कर रहे हैं कि वास्तव में सबसे प्राचीन भाषा कौन सी है।

भाषा एवं लिपि में भेद

भाषा बोलने हेतु प्रयुक्त होती है तथा लिपि भाषा को संरक्षित करने तथा लेखन के माध्यम से अभिव्यक्त करने का माध्यम है। ये दोनों परस्पर स्वतंत्र हैं। अर्थात् न तो भाषा ही लिपि को बद्ध कर सकती है, न तो लिपि भाषा में परिवर्तन कर सकता है। सर्वश्रेष्ठ लिपि वही है जिसमें कि प्रत्येक भाषा के प्रत्येक शब्दों एवं मात्राओं का लेखन हो सके। लिपियों में ब्राह्मी आदि बहुश्रुत प्राचीन लिपियाँ हैं। वर्तमान में संस्कृत तथा हिन्दी भाषाओं हेतु देवनागरी लिपि का उपयोग होता है जो कि इन भाषाओं की सीमा को लेखन तक पहुचाता है। अंग्रेज़ी भाषा हेतु लैटिन लिपि का उपयोग किया जाता है जबकि हम अंग्रेज़ी को देवनागरी में भी लिख ही सकते हैं। यही भाषा तथा लिपि के सामंजस्य तथा उनके अंतर को बताता है। एक उदाहरण से समझें। यदि हम एक हिन्दी वाक्य “मैं घर जा रहा हूँ” को लैटिन लिपि में लिखें तो ये “Mai ghar ja raha hun” के रूप में लिखा जा सकता है। हालाकि लैटिन लिपि में संस्कृत के वर्णों हेतु स्वतंत्र अक्षर उपलब्ध कम ही हैं, किन्तु अन्य अक्षरों के समावेश से संस्कृत के वर्ण अभिव्यक्त हो ही जाते हैं। यदि हम “I am going to my home”, इस अंग्रेजी वाक्य को देवनागरी में लिखें तो यह “आइ एम गोइंग टू माय होम” के रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है। ये दोनों लिपियाँ हैं तथा ये भाषा को लेखन के रूप में अभिव्यक्त करने का माध्यम हैं। ये स्वयं भाषा नहीं हैं। किन्तु लिपियाँ ही वह एकमात्र माध्यम है जिसके कि सहयोग से शोधार्थी भाषाओं पर शोध करके उनके विकास तथा उनकी प्राचीनता आदि का अनुमान लगा सकते हैं।

पाली भाषा का संक्षित्प परिचय

वैसे “पाली” नाम ही प्राचीन प्रचलित नाम नहीं है। ऐसे उद्धरण प्राचीन नहीं हैं। इसे पाली-मगधी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार बुद्ध भी इसी भाषा का उपयोग करते थे किन्तु विद्वानों ने इसे प्राकृत के समान ही तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का ही माना है क्योंकि उन्हे इसके इससे प्राचीन प्रमाण नहीं मिलते। जबकि विकिपीडिया के शोधों से ज्ञात होता है कि पाली की समसे प्राचीन पाण्डुलिपियाँ 9वी शताब्दी के आसपास की हैं जो नेपाल से प्राप्त हुईं। संस्कृत से इसकी भिन्नता यही है कि इसकी वर्णमाला में “ऋ”, “ऐ”, “श”, “ष” आदि नहीं होते।

पाली वर्णमाला

तमिल भाषा का संक्षित्प परिचय

तमिल भाषा की प्राचीनता भी ३०० ई.पू. तक ही प्राप्त होती है। इसके प्राचीनतम साक्ष्य संगम साहित्य के रूप में प्राप्त होते हैं। यह एक ऐसी भाषा है जिसके बोलने वाले सभी प्राचीन भाषाओं से अधिक हैं। अन्य प्राचीन भाषाओं का उपयोग करने वाले या तो अब नहीं हैं, या तो कम हैं किन्तु दक्षिणी भारतीय भूमि में आज भी तमिल का प्रचुर उपयोग होता है जो कि इस भाषा की सफलता का परिचायक है। आर्य प्रवास के भ्रामक सिद्धान्त को बलिष्ठ करने हेतु इस भाषा का भी अस्त्र के रूप में उपयोग किया। इस कारण तमिल की प्रचलिलता वाले क्षेत्रों में संस्कृत का विरोध आज भी दृश्यमान होता है। जबकि संस्कृत साहित्यों में तमिल को संस्कृत की बहन माना गया है जिसके जनक अगस्त्य ऋषि हैं।

संस्कृत भाषा

लोगों के द्वारा विश्व की प्राचीनतम भाषा के रूप में संस्कृत का नाम आता है किन्तु इसके प्रमाण भी १५०० ई.पू. तक के ही प्राप्त हैं। इससे ही ये भाषा तमिल तथा प्राकृत (पाली) से प्राचीन तो सिद्ध हो ही जाती है। हालाकि इसका उपयोग करने वाले आज बहुत कम ही लोग हैं या कहें कि नहीं ही हैं। अब संस्कृत केवल साहित्यिक, शास्त्रीय तथा पवित्र देववाणी बन कर रह गई है। किन्तु इसका स्वरूप न केवल भाषाविदों को अपितु वैज्ञानिकों तक को अत्यंत अचंभित कर देता है क्योंकि प्राचीन होते हुए भी यह आज की समस्त भाषाओं से अधिक उन्नत भाषा है।

संस्कृत के प्राचीनतम प्रमाण तथा उसके प्रति अन्य प्रश्न

अभी तक की चर्चाएं वर्तमान भाषाविदों के साक्ष्यों के आधार पर हुई। किन्तु यदि इससे आगे चर्चा करें तो अनेक गुह्य तथ्य प्रकट होते हैं। तमिल तथा पाली के समर्थक इन्हे संस्कृत से प्राचीन सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं। पाली के समर्थकों का कहना होता है कि अशोक ने संस्कृत का उपयोग नहीं किया। क्योंकि उसके लेखों में “ष”, “श” आदि नहीं हैं जो कि असत्य है। उनका कहना होता है कि पाली से संस्कृत का निर्माण हुआ। बाद में पाली के उच्चारणों में “ष” आदि का समावेश हुआ। अशोक ने संस्कृत शिलालेख भी लिखवाए। बल्कि पाली के लेखों में भी संस्कृत की छाप है।

इनमें “ष”, “श” आदि स्पष्ट हैं जो कि पाली में ही हैं। इससे यही सिद्ध होता है कि प्राचीन पाली में ये अक्षर हुआ करते थे जो धीरे धीरे हटाए गए। इससे सिद्ध होता है कि पाली आदि प्राकृत भाषाएं संस्कृत का ही विकृत स्वरूप हैं।

संस्कृत का प्राचीनतम ग्रंथ वेद है। साक्ष्यों से ये आधुनिक शोधार्थियों की मान्यताओं से कहीं अधिक प्राचीन प्रमाणित हैं। वेदों की प्राचीनता हमने हमारे इस लेख में स्पष्ट की है जिसे आपको पढ़ना चाहिये –

लेख : वेदों की प्राचीनता

वेदों की प्राचीनता से संस्कृत भाषा की प्राचीनता का अनुमान लगाया जा सकता है क्योंकि वेदों की भाषा संस्कृत ही है। 

जो लोग तमिल को संस्कृत से प्राचीन मानते हैं उनका कहना है कि संस्कृत विदेशी भाषा है जिससे पहले समस्त भारत में तमिल बोली जाती थी। वे आर्य अपने साथ वेद लेकर आए। किन्तु वेदों में प्राप्त नदियों, भूखण्डों का वर्णन वेदों को भारतीय ग्रंथ सिद्ध करता है। वेदों के प्रमाण तमिल के प्राचीनतम प्रमाणों से भी प्राचीन हैं। तमिल के प्राथमिक प्रमाण संगम साहित्य में भी वैदिक देवता शिव आदि का वर्णन वेदों को तमिल से प्राचीन सिद्ध करता है।

निष्कर्ष

आधुनिक भाषाविदों के अनुरूप तो विश्व की प्राचीनतम भाषा कौन सी हो सकती है, इसका कोई एक उत्तर दे पाना कठिन है। किन्तु हमारी इस चर्चा से क्या सिद्ध हो रहा है, यह तो आपको पढ़कर ज्ञात हो ही गया होगा। संस्कृत के कई चिह्न विश्वभर की भाषाओं में मिलते हैं जो कि संस्कृत को समस्त भाषाओं की जननी सिद्ध करते हैं। वेदों की प्राचीनता भाषाई प्रवास को वर्तमान भाषाविदों के निष्कर्ष से उल्टा प्रमाणित करती है।

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