संशोधक – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी
(कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि)
प्रेम विवस कर दीन्ही रे मोसे नैना मिलाइ के
चित मित सब हर लीन्हीं रे मोसे नैना मिलाइ के।
प्रेम बटी का मदवा पिलइ के…
मतवारी कर दीन्हीं रे मोसे नैना मिलाइ के।
बल बल जाऊं मैं तोरे रंगरिजवा
अपनी सी रंग दीन्हीं रे मोसे नैना मिलाइ के।
गोरी गोरी बइयां लाली लाली चुरियां
बइयां पकर मुख चीन्ही रे मोसे नैना मिलाइ के।
शरम से लाल मुख झुकी झुकी आखियाँ
लोक लाज सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइ के।
अधरन की कित हाल बताऊँ
निरस सरस कर दीन्ही रे मोसे नैना मिलाइ के।
एरी सखी श्याम के बल बल जइए
मोहे सुहागन कीन्हीं रे मोसे नैना मिलाइ के।
मुख्य गीत को अमीर खुसरो ने निज़ामुद्दीन औलिया के लिये लिखा तथा जिसमें कि वैष्णव धर्म का अपमान किया। इसके मुख्य बोल “छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैसा मिलाइ के” है, जहाँ छाप का तात्पर्य वैष्णवों की दीक्षान्तर्गत प्राप्त शंख चक्र के चिह्न तथा तिलक से वैष्णव तिलक है। लेखक कहता है कि, ‘जब मेरी नैना निज़ामुद्दीन से मिलीं (खुसरो निज़ाम के बल बल जइए) तो मेरे छाप और तिलक सब छिन गए।’ इस गीत में इस प्रकार सनातन का अपमान होने के बाद भी अनभिज्ञ हिन्दू गायक इसे भजन समझकर गाते फिरते हैं। इसी हेतु आचार्य श्री कौशलेन्द्र कृष्ण जी ने सोंचा कि क्यों न इनके हेतु इस गीत का संशोधन किया जाए।
Jay ho maharaj ji 🙏
Ati uttam!