॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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आचार्यश्री जी के विषय में…

 

आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में उत्पन्न मग शाकद्वीपीय ब्राह्मण हैं। ये पौगण्डावस्था से ही श्रीरामचरित्र तथा १७ वर्ष की आयु से श्रीमद्भागवत, शिव, देवी आदि पुराणों का विशुद्ध या संगीतमय वाचन करते हैं। इनके पिता पं. श्री नन्दकिशोर शर्मा पौराणिक जी तथा माता श्रीमति कुसुम शर्मा है। बचपन से ही कौशलेन्द्रकृष्ण जी को भागवत तथा अन्य सनातन शास्त्रों के प्रति अगाध श्रद्धा रही है। बड़े होते हुए कई संतों का सानिध्य मिला। इस रुचि तथा इस सानिध्य के फलस्वरूप ये वर्तमान हैं।

भारतीय सनातन ग्रंथों के सतत अध्येता तथा ग्रंथों में विविध प्रश्नों का निष्कर्ष ढूँढते रहने वाले महाराज जी हैं। एक वार १७ वर्ष की आयु में देवी शक्ति का दर्शन करके उनकी स्वप्न में ही स्तुति कर संस्कृत रूपी आशीष प्राप्त करने वाले महाराज ही हैं। वस्तुतः इनका नाम “कौशलेन्द्र” है, किन्तु श्रीमलूकपीठाधीश्वर महाराज को यह नाम आधा लगा। ऐसे में श्री राजेन्द्रदेवाचार्य जी ने इनके नाम के साथ “कृष्ण” जोड़कर इन्हें अनुपम सन्त अनुग्रह रूपी उपहार दिया।

इनके द्वारा रचित पहला स्तोत्र “भवानीसप्तकम्”, जो कि एक बड़ा ही सिद्ध स्तोत्र है। यह वही स्तोत्र है जिसका निर्माण इन्होंने १७ वर्ष की आयु में स्वप्न में किया था। न तो व्याकरण का ज्ञान, न ही वाच्यादि का, तथापि संस्कृत में ऐसा सुन्दर श्लोक लिखना विलक्षणता ही थी। तब से अनवरत कुछ न कुछ लिखना चल ही रहा है। हिन्दी में भी, “तीव्र दामिनी वर्षा निर्मल” आदि इनकी मनमोहक कृतियाँ पाठ्य है।
यह वेबसाइट उनका आधिकारिक वेबसाइट है। आप ऊपर, नीचे स्थानों से उनसे फेसबुक पर भी जुड़ सकते हैं। अधिक पढ़ें…..

 

आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में उत्पन्न मग शाकद्वीपीय ब्राह्मण हैं। ये पौगण्डावस्था से ही श्रीरामचरित्र तथा १७ वर्ष की आयु से श्रीमद्भागवत, शिव, देवी आदि पुराणों का विशुद्ध या संगीतमय वाचन करते हैं। इनके पिता पं. श्री नन्दकिशोर शर्मा पौराणिक जी तथा माता श्रीमति कुसुम शर्मा है। बचपन से ही कौशलेन्द्रकृष्ण जी को भागवत तथा अन्य सनातन शास्त्रों के प्रति अगाध श्रद्धा रही है। बड़े होते हुए कई संतों का सानिध्य मिला। इस रुचि तथा इस सानिध्य के फलस्वरूप ये वर्तमान हैं।

भारतीय सनातन ग्रंथों के सतत अध्येता तथा ग्रंथों में विविध प्रश्नों का निष्कर्ष ढूँढते रहने वाले महाराज जी हैं। एक वार १७ वर्ष की आयु में देवी शक्ति का दर्शन करके उनकी स्वप्न में ही स्तुति कर संस्कृत रूपी आशीष प्राप्त करने वाले महाराज ही हैं। वस्तुतः इनका नाम “कौशलेन्द्र” है, किन्तु श्रीमलूकपीठाधीश्वर महाराज को यह नाम आधा लगा। ऐसे में श्री राजेन्द्रदेवाचार्य जी ने इनके नाम के साथ “कृष्ण” जोड़कर इन्हें अनुपम सन्त अनुग्रह रूपी उपहार दिया।

इनके द्वारा रचित पहला स्तोत्र “भवानीसप्तकम्”, जो कि एक बड़ा ही सिद्ध स्तोत्र है। यह वही स्तोत्र है जिसका निर्माण इन्होंने १७ वर्ष की आयु में स्वप्न में किया था। न तो व्याकरण का ज्ञान, न ही वाच्यादि का, तथापि संस्कृत में ऐसा सुन्दर श्लोक लिखना विलक्षणता ही थी। तब से अनवरत कुछ न कुछ लिखना चल ही रहा है। हिन्दी में भी, “तीव्र दामिनी वर्षा निर्मल” आदि इनकी मनमोहक कृतियाँ पाठ्य है।
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क्या हिन्दू बौद्ध मूर्तियों को पूजते हैं?

   लेखक - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) शुरू करने से पहले, यह लेख किसी भी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुचाने हेतु नहीं लिखी गई है बल्कि कुछ लोगों के उन वाक्यों का प्रत्युत्तर है जिसमें कि वे हिन्दुओं को लक्ष्य...

विश्व की सबसे प्राचीन भाषा

   लेखक - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) लोगों के मन में यह प्रश्न तब से है जब से वे भाषा का अध्ययन कर रहे हैं। जनमानस में संस्कृत ही सबसे प्राचीन भाषा है किन्तु भ्रामक आर्य प्रवास प्रभृति व्याख्याओं के बाद से...

2024 की दीपावली कब? 31 अक्टूबर या 1 नवंबर?

   लेखक - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) कई लोगों के संदेश आए। प्रश्न आए कि दीपावली कब है। कई सज्जनों ने पूछा कि, 'आप दीपावली कब मना रहे हो?' हमने सोंचा कि वीडियो बनाकर इसका उत्तर दे दें। किन्तु वीडियो हेतु...

तैं नइ जानच (लोकगीत)

   लेखक - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) तैं हा नइ जानच पोंगा फँसे हे तोर डोंगातैं नइ जानच।ये रे!तोर मोर काया माटी के संगी मोर!एही आवै जम्मो पोथी बेद के निचोरतैं हा नइ जानच।लाली पानी के तोर काया लपटाय!जिहाँ ले...

ख्वाब में आकर कन्हैया क्यूँ सताते हो?

   लेखक - आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि) ख्वाब में आकर कन्हैया क्यूँ सताते हो?जो जगूँ तो यूँ ही कैसे भाग जाते हो?रुक के पल भर देख लो रे ऐ मेरे ज़ालिमराधिका के नाम की आँसू बहाते हो।ख्वाब में नित ही लबों को चूम...
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“अधिगतपरमार्थान् पण्डितान् माऽवमस्थास्तृणमिव लघुलक्ष्मीर्नैव तान् संरुणद्धि। अभिनवमदरेखाश्यामगण्डस्थलानां न भवति विसतन्तुर्वारणं वारणानाम्॥”

– भर्तृहरि

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