

लेखक – पं. श्री अंकित शर्मा
(कर्मकाण्डविद्, सतत अध्येता)
भगवान् शिव का भगवती उमा के साथ गृहस्थरूप भारतीय नारी के पातिव्रत और सती धर्म का आदर्श है। वस्तुतः भगवान् शिव की यह दैवी धारणा मानवीय संस्कृति की विराट् रूपा हमारी संस्कृति की प्राण है।
“या उमा सा स्वयं विष्णुः………………..॥ येेऽर्चयन्ति हरिं भक्त्या तेऽर्चयन्ति वृषभध्वजम्। पुंल्लिङ्गं सर्वमीशानं स्त्रीलिङ्गं भगवत्युमा॥ व्यक्तं सर्वमुमारूपमव्यक्तं महेश्वरः। उमाशंकरयोर्योगः स योगो विष्णुरुच्यते॥”
शिवकी यह अखण्ड एकता इतनी अनन्य है कि भगवान् ब्रह्मा, विष्णु, राम, कृष्ण आदिसे शिवको अलग माननेवाला कल्पोंतक नरक भोगने का दण्ड पाता है। देव और दानवके मध्य सांस्कृतिक एकता एवं सामञ्जस्य शिवसे ही भारतीय संस्कृतिमें संतुलित रहा है। भगवान शिवका आवास हिमालय पर्वत है, जो प्राचीनतम दैवी संस्कृति का केन्द्र रहा था। महाभारत में शिव के किरात-वेश में अर्जुन को पाशुपत अस्त्र देने तथा सैन्यरुप में “योद्धारुप” उनकी विशिष्टता दर्शाता है। लोककथाओं में दुःखों से दग्ध मानव- समाज में समय-समय पर शंकर-पार्वती के भारत भ्रमण एवं दीन दुखियों के दुःख दूर करने के वृत्तान्त आज भी जनमानस में उनकी वत्सलता प्रमाणित करते हैं। देवलोक से मानवलोक तक समाज की स्थिति के अनुरूप उनका आशुतोष, भोलेनाथ, त्वरितप्रसन्न और कल्याणकारी रूप आज तक अपनी युगयुगीन गरिमा लिये प्रसिद्ध है। शिव, उमा, गणेश, स्कन्दरूप में शिव की गृहस्थी भारत का आदर्श गृहस्थ-धर्म है। भारत भूमि में शिव की उपासना का मङ्गलमय अवतरण किसी भी मूल्य में भगवती भागीरथी के अवतरण से कम नहीं है।
शिव का लोकत्रातारूप महादेव, महेश्वर, शंकर, शिव आदि रूप में भारतीय धर्मप्राण जनता के हृदय पर आज भी रमा है। शिवोपासना समस्त कर्मकाण्डों से रहित एवं अनायास सिद्ध है। अतः शिव की लोकप्रियता भारतीय राष्ट्रिय एकता का प्राण तत्व रही है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है “शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग”। इन रूपों में शिव अपने विविध रूपों में हिमालय से सेतुबन्ध रामेश्वर तक परम रूप में मान्य हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंग भारतभूमि की भौगोलिक गरिमा का दर्शन है। शस्यश्यामला धरती के नैसर्गिक वनों की सुषमामय छवि के साथ नदियों का पावन तट प्रकृति की सुन्दर क्रीङामय भूमि में शिव का यह सच्ची झांकी है —
(१) हिमालय—केदारेश्वर,
(२) उत्तरप्रदेश—काशीविश्वनाथ,
(३) मध्यप्रदेश—उज्जैन-महाकाल
(४) ओंकारेश्वर
(५) सौराष्ट्र गुजरात—सोमनाथ,
(६) आन्ध्रप्रदेश—परली में दारुकवन में नागेश्वर,
(७) बिहार प्रदेश—वैद्यनाथ,
(८) औरंगाबाद—शिवालय में घुश्मेश्वर,
(९) महाराष्ट्र-नासिक में— त्र्यंबकेश्वर,
(१०) बम्बई के मध्य सह्य पर्वत के डाकिनी नामक स्थान पर भीमशंकर,
(११) मद्रास —श्रीशैल पर्वत पर मल्लिकार्जुन,
(१२) सेतुबंध पर रामेश्वर।
शिव के साथ शिवा (भवानी) के ८४ शक्तिपीठ सिद्धक्षेत्र सम्पूर्ण भारत में गहन वन-पर्वतों का रूप है। भगवान् शिव का देश-व्यापी रूप अपनी विराट्ता में आज भी अद्वितीय है, भारतीय संस्कृति में जितने भी धर्म-सम्प्रदाय प्रवर्तित हुए उनमें भगवान् शिव का नाम अत्यंत लोकप्रिय है। भक्तिमार्ग, ज्ञानमार्ग, योगमार्ग, शैव, वैष्णव, शाक्त, तन्त्र-मन्त्र-सिद्धकर्ता एवं बाद में जितने भी मत-मतान्तर हुए उन सबमें भगवान् शिव का रूप प्रभावशाली है। इसके साथ ही कला के क्षेत्र में शिव का नृत्यकर्त्तारूप डमरू, ताण्डवनृत्य आदि भी विचारणीय है। शिव संघर्ष में आनन्द के साधक हैं। योग और समाधि के आनन्द की चरमता के प्रमाण हैं। भगवान् शिव के साथ ही नन्दीश्वर, रुद्रगण, पञ्चमुखी, त्रिगुण, अष्टमूर्ति, काम-दहन, त्रिपुर-वध, पशुपति, शङ्ख, डमरू, सर्प, विभूति, बैर, प्रदोष, बिल्वपत्र, आक, नर-नारिश्वर, आदि कई प्रकरण अनुसंधान करनें पर शिव-सम्बन्धी महत्वपूर्ण निर्देशन कर सकते हैं।
अनुशीलन करने पर आर्य सभ्यता के वैज्ञानिक इतिहास के संकेत इनसे मिलेंगे। जैसे ‘बिल्बपत्र’ को देखें तो इसकी सूक्ष्म काया भी त्रिवर्ग में होती है। इसका कोई पत्ता तीन से कम ना होगा। यह त्रिमूर्ति या त्रिगुण रूप में शिव की समन्वित एकता का प्रमाण है। बिल्ब पत्र वृक्ष का पत्ता-पत्ता जिस प्रकार तीन होकर भी एक से जुङा है, वैसे ही आदिनाथ शंकर भी एक हैं। ऐसे ही ‘आक पुष्प’ (आंकड़ा) भगवान् शिव के पञ्चमुखी या पञ्चरूप का प्रमाण है। आक-पुष्प में पाँच पंखुङी की एकता विचित्र है। आज भी सावन मास में धरती जब हरीतिमास में आच्छादित हो वनस्थलीय सुषमा से अलंकृत होती है, तब शिव भक्त सावन व्रत रखते हैं। इसमें भगवान् शंकर को ३६ प्रकार की वनस्थलीय पत्तियाँ अर्पित होती हैं। शिवालय सदैव स्नानयोग्य जलाशय से युक्त रमणीय स्थान पर होता है। वहीं प्राकृतिक जल से स्नान-ध्यान और एकान्त शिवोपासना और फिर आनन्द ही आनन्द।
वस्तुतः जीवन के सुख-दुःख, मङ्गल-अमङ्गल, प्रकाश-अन्धकार, जीवन-मृत्यु की इस जीवन-यात्रा में अमङ्गल से मङ्गल, तमस् से ज्योतिर्गमय माङ्गलिक कल्याणकारी आनन्दमय जीवन ही शिव की भक्तिमय साधना का रहस्य है, जो भारत की महा-गरिमामय विभिन्नता में एकता का विराट् रूप दर्शाती है।
“अमङ्गल्यं तव शीलं भवतु नामैवमखिलम्। तथापि स्मर्तृणां वरद परमं मङ्गलमसि॥”
बहुत अच्छा
धन्यवाद नाना जी सादर प्रणाम 🙏🙏
बहुत अच्छा
पण्डित जी को मेरा प्रणाम।पं़ जी आपकी रचना बहुत ही प्रेरणा दायक है, इनके एक एक शब्द विचारणीय एवं अपने जीवन में आत्मसात करने योग्य है आशा है आप आगे भी हमें इसी प्रकार अपने ज्ञान दीप से प्रकाशित करते रहेंगे।जय श्री राम। हर हर महादेव शंभू काशी विश्वनाथ गंगे।
शिवायोन्नमः🙏
अवश्य महोदय जी।
पण्डित जी को मेरा प्रणाम।पं़ जी आपकी रचना बहुत ही प्रेरणा दायक है, इनके एक एक शब्द विचारणीय एवं अपने जीवन में आत्मसात करने योग्य है आशा है आप आगे भी हमें इसी प्रकार अपने ज्ञान दीप से प्रकाशित करते रहेंगे।जय श्री राम। हर हर महादेव शंभू काशी विश्वनाथ गंगे।
पण्डित जी को मेरा प्रणाम।पं़ जी आपकी रचना बहुत ही प्रेरणा दायक है, इनके एक एक शब्द विचारणीय एवं अपने जीवन में आत्मसात करने योग्य है आशा है आप आगे भी हमें इसी प्रकार अपने ज्ञान दीप से प्रकाशित करते रहेंगे।जय श्री राम। हर हर महादेव शंभू काशी विश्वनाथ गंगे।
बहुत सुन्दर वर्णन
शिवायोन्नमः 🙏🙏