

लेखक – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी
(कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि)
आज के युग में पर्यावरण प्रदूषण हमारी सबसे बड़ी समस्या बन चुका है। इसी बात को ध्यान में रखकर वर्तमान समय में दीपावली पर्व पर पटाखों से दूरी रखने का आदेश दिया जाता है। इस आदेश का हम सब भी पालन करते हैं क्योंकि हमें ज्ञात तो यही है कि दीपावली तो केवल दीपों का पर्व है। आज आप सबको यह जानकारी हो जाएगी कि दीपावली क्या केवल दीपों का पर्व है?
असुरेन्द्र महाराज बलि के पाताल गमन के उपलक्ष्य में ही दीपावली की परम्परा है। इस दिन सपरिवृत माता लक्ष्मी की पूजा करके दीप जलाने की परम्परा सर्वविदित है। इसके उपरान्त ही “उल्का (आतिशबाज़ी)” की भी व्यवस्था बताई गई जो कि पटाखों से ही होता है। यह उल्का नामक क्रिया वस्तुतः तारागणों के प्रकाश का प्रतीक ही है। इसके साथ ही शयनकाल में शयन न करते हुए रात्रिवेला में विभिन्न तीव्र ध्वनियों के निर्माण से अलक्ष्मी को भगाने का आदेश है। यह तीव्र ध्वनियाँ पटाखों से भी निःसृत होंगी। आइये कुछ शास्त्रवाक्य देखें जो दीपावली पर पटाखों का समर्थन करते हैं।
“तुलाराशिं गते भानौ अमावस्यां नराधिपः।
– तिथितत्वम्, अमावस्याप्रकरणम्
स्नात्वा देवान् पितॄन् भक्त्या संयुज्याथ प्रणम्य च॥
कृत्वा तु पार्वणश्राद्धं दधिक्षीरगुड़ादिभिः।
ततोऽपराह्ण समये घोषयेन्नगरे नृपः॥
लक्ष्मीः संपूज्यतां देवीम् उल्काभिश्चापि वेष्टताम्॥”
“प्रकाशिताग्राः पार्थेन ज्वलदुल्मुकपाणिना।”
– भारतमञ्जरी १|८९०
“त्वं ज्योतिः श्रीरवीन्द्वग्निविद्युत्सौवर्णतारकाः।
– स्कन्द पुराण, द्वितीय खण्ड (वैष्णवखण्ड) अध्याय ९
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपज्योतिः स्थिते नमः॥
या लक्ष्मीर्दिवसे पुण्ये दीपावल्यां च भूतले।
गवां गोष्ठे तु कार्तिक्यां सा लक्ष्मीर्वरदा मम॥
दीपदानं ततः कुर्यात्प्रदोषे च तथोल्मुकम्।
भ्रामयेत्स्वस्य शिरसि सर्वाऽरिष्टनिवारणम्॥”
“गवां गोष्ठे तु कार्तिक्यां सा लक्ष्मीर्वरदा मम॥
– पद्मपुराण ६|१२२
शंकरश्च भवानी च क्रीडया द्यूतमास्थितौ।
भवान्याभ्यर्चिता लक्ष्मीर्धेनुरूपेण संस्थिता॥
गौर्या जित्वा पुरा शंभुर्नग्नो द्यूते विसर्जितः॥
अतोऽयं शंकरो दुःखी गौरी नित्यं सुखे स्थिता॥
प्रथमं विजयो यस्य तस्य संवत्सरं सुखम्।
एवं गते निशीथे तु जने निद्रार्ध लोचने॥
तावन्नगरनारीभिस्तूर्य डिंडिमवादनैः।
निष्कास्यते प्रहृष्टाभिरलक्ष्मीश्च गृहां गणात्॥”
अब इसके बाद प्रश्न यह उठता ही है कि ऐसे में हम अपने पर्यावरण को कैसे बचाएं? यहाँ सोंचने वाली बात यह भी है कि एक ओर जहाँ विभिन्न भयंकर कारखाने चल रहे हैं, वृक्षों की कटाई हो रही है जिनसे कि एक साथ पर्यावरण के विभिन्न भाग प्रदूषित हो रहे हैं, क्या एक दिन पटाखें जलाना इन प्रभृति कार्यों के समकक्ष प्रदूषण फैलाता है? और यदि फैलाता भी है तो आज के युग में क्या बिना प्रदूषण के बाण (बारूद) का निर्माण असंभव है? और यदि असंभव है तो आधुनिक ईश्वरविरोधी विज्ञान किस आधार पर स्वयं को भगवान् घोषित किये बैठा है?
इन सभी तथ्यों पर थोड़ा सा मनन करें, आपको पटाखें जलाना चाहिये कि नहीं, इसका उत्तर स्वतः प्राप्त हो जाएगा। क्योंकि आपको भी ज्ञात है कि ऐसे प्रश्न केवल हिन्दू त्यौहारों पर उठते हैं।३३