आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी ११ वर्ष की आयु से अपने मुखारविन्द से सरस कथा का प्रवचन कर जनमन के हृदय मे भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य जगा रहे हैं। वैसे आजकल भागवत तथा रामचरित मानस कथा वक्ताओं की बाढ़ सी आ गयी है। वृन्दावन आदि तीर्थों में ऐसी अनेक संस्थाएं हैं जो सात दिनों की कथा रटाकर नए नए भागवत वक्ता लॉन्च कर रहे हैं। ऐसे वक्ताओं को वही कथाएं आतीं हैं जो उन्हे साल भर में रटा दी गईं। जबकि हमारे आचार्यगण बताते हैं कि वक्ता ‘वेदशास्त्रविशुद्धकृद्दृष्टान्तकुशलो धीरः’ अर्थात् जिसने परंपरा से वेदशास्त्रों का अध्ययन किया/कर रहा हो, दृष्टान्तों के माध्यम से कठिन विषयों को भी श्रोताओं को समझा सके वही वक्ता का पात्र होता है। आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी ५ से ७ वर्ष की आयु से न केवल भागवत अपितु वेद, स्मृति, उपनिषद्, पुराण आदि का निरंतर अध्ययन कर रहे हैं। इसका प्रभाव उनकी कथाशैली में स्पष्ट झलकता है। क्योंकि उनकी कथाओं में विषय के अतिरिक्त व्यर्थ चर्चाएं, टोने टोटके निषिद्ध हैं। इनका उद्देश्य कथा के माध्यम से धन एकत्रित करना नहीं अपितु जन एकत्रित करना है ताकि लोग श्रुतिवाक्य “धर्मं चर” अर्थात् ‘धर्म पर चलो’ का आचरण कर सकें।
यदि आप आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी के श्रीमु़ख से रामचरितमानस, श्रीमद्भागवत, श्रीमद्देवीभागवत, वाल्मीकीय रामायण, शिव महापुराण एवं अन्यान्य शास्त्रों में से किसी शास्त्र की कथा का आयोजन करना चाहते हैं तो नीचे दिये ‘Book Now’ बटन को क्लिक करके कथा हेतु श्रीफल अर्पित करके अपनी आयोजन तिथि सुरक्षित कर लें।
कथा से पूर्व के प्रश्न तथा उनके उत्तर :-
प्रश्न – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी कथा की कितनी दक्षिणा लेते हैं?
उत्तर – वे अपनी दक्षिणा की बात करके कभी भी कथा नहीं करते। यजमान स्वेच्छा से जो देता है, वही उनकी दक्षिणा होती है। संगीत, भोजन निर्माण करने आए ब्राह्मण देवता, पारायणकर्ता, उद्घोषक आदि की दक्षिणाएं निश्चित होतीं हैं न कि व्यासजी की। इन सबकी चर्चा Pre-Booking (श्रीफल भेंट) के बाद की जाएगी। क्योंकि ये आपके आयोजन के आकार पर निर्भर होगा।