Description
हर ब्राह्मणादि द्विजों के गोत्रों के माध्यम से भिन्न भिन्न वेद स्वीकृत हैं। उन वेदों की भिन्न भिन्न शाखाएं हैं तथा उनके गृह्यादि सूत्र भी भिन्न हैं। उनके अनुसार ही उस गोत्र के द्विज का आचार निश्चित होता है। संध्या द्विजाति का मूल आचार है। वेदानुसार इसमें भी वैषम्य है। सामवेद की यह संध्या पद्धति दक्षिण सामवेदीय संध्या पद्धति का रूप अवगत कराती है।
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