॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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ग्रंथाकृति में पहली बार। मगों तथा सूर्योपासक विप्रों हेतु परमावश्यक “अव्यंग” का दुर्लभ विधान जो कि मात्र १२ रश्मियों (अध्यायों) तथा ३६० श्लोकों में लिखित है।

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विवरण

लेखकआचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी
प्रकाशकNOTION PRESS, AACHARYASHRI.IN

आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी द्वारा रचित “अव्यंगभानु” ग्रंथ प्रकाशित हो गया है। इसमें कुल १२ रश्मि (अध्याय) तथा ३६० श्लोक हैं। रश्मि १ से ५ तक अव्यंक की महिमा, विधि, प्रतिष्ठा, पूजन आदि का क्रमा है। रश्मि ६ से ११ तक भविष्योत्तर पुराण का बृहद् आदित्य हृदय स्तोत्र टीका सहित संकलित है। इसके अतिरिक्त परिशिष्ट में कु़छ दुर्लभ स्तोत्र, आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी कृत सूर्यहर्षणस्तोत्र तथा अन्तिम में कुछ दुर्लभ सौर यंत्र भी संलग्न हैं।

ब्राह्मणों हेतु सूर्य ही सर्वश्रेष्ठ आराध्य हैं। चाहे वह ब्राह्मण किसी भी सम्प्रदाय से हो किन्तु परमधर्मस्वरूपिणी संध्या क्रिया में हर ब्राह्मण “सविता (सूर्य)” की ही आराधना करता है। इसी से वह जातिर्ब्राह्मण भूसुर की उपाधि प्राप्त करता है। इस आराधना के साथ ही जो ब्राह्मण सूर्य को अपना इष्ट भी मानता है किंवा सूर्यागम से दीक्षित है, उसके हेतु यह ग्रन्थ पठनीय तथा अनुकरणीय है। यह वैकल्पिक नहीं अपितु उसके लिये यह अत्यावश्यक है।

अव्यंग का स्वरूप, अव्यंग क्या है तथा अव्यंगभानु के विषय पर चर्चा

इसके अतिरिक्त जिसका जन्म मग शाकद्वीपीय कुल में हो गया, उस विप्र हेतु तो यह परमावश्यक है। इस ग्रंथ में अव्यंग संस्कार का सविधि वर्णन है। अव्यंग भगवान् सूर्य को अत्यंत प्रिय तथा यज्ञोपवीत के समान ही शक्तिसम्पन्न धारण करने योग्य शक्ति है। इसका वर्णन भविष्यपुराण में है किन्तु इसकी विधि का वर्णन कहीं भी प्राप्त नहीं। सौर संप्रदाय के गुप्त हो जाने के पश्चात् यह विधान पुनः श्रीसूर्य की इच्छा से ही सार्वजनिक हो रहा है। इस ग्रंथ में हमारा स्वप्नगत अनुभव लिखित है। इसमें हमारा तथा एक तैजस आचार्य का संवाद है जिनसे प्राप्त यह विषयवस्तु अनुपम है जो हम सबको प्रगति देने वाला है। अतः आप समस्त सूर्यप्रेमी बन्धु तत्काल अपने मनोवांछित स्वरूप में इसे प्राप्त करें।

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