॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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Avyangabhanu (Book)

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सूर्य आगम में वर्णित अव्यंग की प्रतिष्ठा का अत्यंत दुर्लभ विधान जो कि केवल इसी ग्रंथ में प्राप्य है, कहीं और नहीं।

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Description

अव्यंगभानु भारतीय प्राचीन संस्कृति के सौर संप्रदाय का अत्यंत महत्वपूर्ण अंग अव्यंग पर केंद्रित संकलित ग्रंथ है। इसमें जो विधान मिलता है, वह अन्यत्र उपलब्ध नहीं है। लेखक ने बड़ी मेहनत से इन सबको संकलित करके इस पुस्तक का रूप दिया है, ताकि यह हर आम आदमी तक पहुंच सके। अव्यंग यज्ञोपवीत के समान एक सूत्र है, जिसे सौर विप्र अपनी कमर पर पहनते हैं। इसका प्रतीकात्मक वर्णन भविष्य पुराण में मिलता है। उसी वर्णन को आधार मानकर इस पुस्तक की रचना की गई है। आशा है आप सभी को यह बहुत पसंद आएगी। इसके साथ ही इसमें लेखक की दिव्य काव्य प्रतिभा के दर्शन होते हैं। इस संपूर्ण ग्रंथ में 12 रश्मियाँ (अध्याय) हैं। इसमें कुल 360 श्लोक हैं। इसमें भविष्योत्तर पुराण का बृहत् आदित्य हृदय स्तोत्र तथा भविष्य पुराण का अव्यंग नामक अध्याय यथावत संकलित किया गया है। अंतिम भाग में कुछ अन्य स्तोत्रों के साथ कुछ आवश्यक सौर यंत्र भी संलग्न किए गए हैं। इसके साथ ही लेखक द्वारा रचित “श्री सूर्यहर्षण स्तोत्रम्” भी संकलित किया गया है। यह सब तो अन्य स्थानों में भी सुलभ है। यदि दुर्लभ है तो वह है इस ग्रंथ में उपलब्ध अव्यंग प्रतिष्ठा विधान जो कि अव्यंगभानु के अतिरिक्त कहीं भी उपलब्ध नहीं।

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