॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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॥ अथ स्तोत्रम् ॥

सिद्धेश्वर्य्यैः नमस्तुभ्यं नमस्ते च शिवप्रिये।
धूम्राक्ष्यै च विरुपायै घोरायै च नमो नमः॥

हे सिद्धेश्वरी! आपके लिये नमस्कार है। हे शिव की प्रिया! हे धूम्राक्षी! हे विरूपा! हे घोरा! आपका नमस्कार है।

पञ्चास्यायै शुभास्यायै चन्द्रास्यायै च वै नमः।
वरदायै वराहायै कुर्मायै च पुनर्नमः॥२॥

पांच मुख वाली, सुन्दर मुख वाली, चन्द्र के समान मुख वाली, वर देने वाली, वाराही तथा कूर्मा को पुनः नमस्कार है।

नरवीरार्द्धदेहायै त्रिनेत्रायै नमो नमः।
लीलाऽलकशिखण्डायै विश्वायै च पुनर्नमः॥३॥

भगवान् शिव की अर्धांगिनी तथा तीन नेत्रों वाली को नमस्कार है। मयूर के समान ललित अलकाओं वाली, विश्वस्वरूपिणी को पुनः नमस्कार है।

कव्यरुपायै हव्यायै रुद्रजाप्यै नमोनमः।
मुण्डायै चण्डमुण्डायै दिग्वस्त्रायै नमोनमः॥४॥

कव्य, हव्य तथा भगवान् शिव के भी जपयोग्य को नमस्कार है। मुण्डा, चण्डमुण्डा तथा दिग्वस्त्रा को नमस्कार है।

गिरीशायै सुरेशायै विश्वेशायै च वै नमः।
विरुपायै स्वरुपायै ईशान्यायै नमोनमः॥५॥

पर्वतों की अधीश्वरी, सुरेश्वरी तथा समस्त विश्व की ईश्वरी को नमस्कार है। बिना रूप वाली तथा रूप युक्त ईशानी को नमस्कार है।

सिंहासनायै सिंहायै सोमायै सततं नमः।
शाकद्वीप निवासायै शाकायै सततं नमः॥६॥

सिंहासन में विराजमान, सिंह के समान तैजसस्वरूप वाली तथा चंद्र के समान स्वरूप वाली को वारंवार नमस्कार है। शाकद्वीप में रहने वाली शाकस्वरूपिणी को नमस्कार है।

भक्ते शोभान्तरुपायै अथर्वणायै नमो नमः।
ऋक्सामयजुरुपायै शाकद्वीपप्रिये नमः॥७॥

भक्त पर सदा कृपा करने वाली अथर्वणा को नमस्कार है। ऋक्, साम तथा यजुः छन्दस्वरूपिणी तथा शाकद्वीपवासियों की प्रिय देवी को नमस्कार है।

शाकद्वीपकुलोद्धारकारिण्यै च नमो नमः।
शाकद्वीपप्रियायै च कुलदेव्यै नमो नमः॥८॥

शाकद्वीपीय कुल की उद्धार करने वाली को नमस्कार है। शाकद्वीप की इष्टा तथा उनकी कुलदेवी को नमस्कार है।

अष्टादशकुलपूज्यायै सिद्धिदायै नमो नमः।
सिद्धिदा श्रावणे मासे फाल्गुने सर्वकामिका॥९॥
पुष्पमालार्चिता देवी सर्वदा निश्चितं भवेत्॥१०॥

अट्ठारह कुलों की पूज्या तथा सिद्धि देने वाली को नमस्कार है। यदि पुष्पमाला से उनका पूजन हो तो वे निश्चित ही श्रावण मास में सिद्धिदा तथा फाल्गुन में सर्वकामिका हो जातीं हैं।

॥ इति सनतकुमारसंहितायां श्रीसिद्धेश्वरीस्तोत्रम् ॥

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