॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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॥ अथ स्तोत्रम् ॥

श्रीसूर्य उवाच
श्रृणु साम्ब महाबाहो सिद्धास्तोत्रमनुत्तमम्।
विरुद्धस्याऽसुरगुरौः पीडाशान्तिविधायकम्॥१॥

भगवान् सूर्य कहते हैं, हे साम्ब! तुम इस सिद्धा स्तोत्र को सुनो। जो स्तोत्र असुरों के गुरु की पीड़ा को समाप्त कर देने वाला है।

योगिनी सिद्धिदा सिद्धा मन्त्रसिद्धिस्वरूपिणी।
तमसा सिद्धिरूपा च दयारूपा क्षमान्विता॥२॥

वह देवी योगिनी, सिद्धि देने वाली, सिद्ध, मन्त्रसिद्धि स्वरूप वाली, तमसा, सिद्धिस्वरूपिणी, दयारूपिणी तथा क्षमा से परिपूर्ण है।

सिद्धिरूपा शान्तिरूपा मेधारूपा तपस्विनी।
पद्महस्ता पद्मनेत्रा शुक्रमाता महेश्वरी॥३॥

वे सिद्धि रूप वाली, शान्तिमय रूप वाली, मेधा, तपस्विनी, हाथों में पद्म धारण करने वाली, कमल के समान नेत्र वाली हैं। वे शुक्राचार्य की माता तथा महेश्वरी हैं।

वरदा धनदा धान्या राज्यदा सुखदायिनी।
शरदा च रमा काली प्रज्ञासागररुपिणी॥४॥

वह वर देने वाली, धन देने वाली, अन्न स्वरूपिणी, राज्य देने वाली, सुख देने वाली, सरस्वती, लक्ष्मी, काली तथा प्रज्ञा रूपी सागर रूप वाली है।

सिद्धेश्वरी सिद्धिविद्या सिद्धिलक्ष्मी च पंकजाः।
शुक्लवर्णा श्वेतवस्त्रा श्वेतमाल्याऽनुलेपना॥५॥

वे ही सिद्धेश्वरी, सिद्धिविद्या, सिद्धिलक्ष्मी तथा पंकजा हैं। वे गौर शरीर वाली, धवल वस्त्र वाली, श्वेत पुष्पों की माला धारण करने वाली तथा श्वेत चंदन का ही लेपन करने वाली हैं।

श्वेतपर्वतसंकाशा सुश्वेतस्तनमण्डला।
कर्पूरराशिमध्यस्था चन्द्रमण्डलवासिनी॥६॥

उनका रूप श्वेत पर्वत सदृश है। उनके कुचभाग श्वेतवर्ण के हैं। चारो ओर से कपूर के भंडार से घिरी हुईं वे ही चन्द्रमण्डल में निवास करने वाली हैं।

कृशरान्नप्रिया साध्वी त्रिमधुस्था प्रियम्वदा।
कन्याशरीरगा रामा विप्रदेहविचारिणी॥७॥

वे कृशर (खिचड़ी) को भाने वाली साध्वी तथा तीन प्रकार के मधु (तीनों छन्द) में सदा रहने वाली मृदुभाषिणी हैं। कन्या का स्वरूप धारण करने वाली, सुन्दरी तथा विप्रों को सदा प्रेरित करने वाली हैं।

चित्रा हस्ता च सुभगा परमान्नप्रिया तथा।
दशाश्वरूपा नक्षत्ररुपाऽन्तर्यामिरुपिणी॥८॥

वे चित्रा, हस्ता, सुभगा तथा खीर को भाने वालीं हैं। वे दश घोड़ों वाले चन्द्रमा के समान हैं। वे नक्षत्रस्वरूपिणी हैं तथा अंतःकरण में विद्यमान रहने वाली हैं।

सिद्धेश्वरी सिद्धरुपा सिद्धिदा सिद्धिरुपिणी।
इत्येत्कथितं वत्स सिद्धास्तोत्रमनुत्तमम्॥९॥
पठनात्पाठनाद्वापि गोसहस्रफलं लभेत्।
ग्रहजन्यं दशाजन्यं चक्रजं भूतसम्भवम्॥१०॥
पिशाचोरगगन्धर्वपूतनामातृसम्भवम्।
दोषं विनाशमायान्ति सत्यं सत्यं न संशयः॥११॥

उन सिद्धेश्वरी का सिद्ध रूप है। वे सिद्धि देने वाली तथा स्वयं सिद्धि हैं। इस प्रकार हे पुत्र! ये जो सिद्धा स्तोत्र मेरे द्वारा कहा गया है, इसके पठन पाठन से हज़ार गाय के दान का फल मिलता है। इसके पाठ से ग्रह, दशा, चक्र, भूत, पिशाच, सर्प, गंधर्व तथा पूतना आदि माताओं के द्वारा उत्पन्न दोष समाप्त हो जाते हैं, ये सत्य है। इसमें संशय नहीं।

॥ इति श्रीसाम्बपुराणे सूर्यसाम्बसंवादे सिद्धास्तोत्रम् ॥

सनत्कुमार संहिता में वर्णित सिद्धेश्वरी स्तोत्र पढ़ने हेतु क्लिक करें।

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