प्रणेता – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी
(कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि)
प्राक्कथन
माता सिद्धेश्वरी का शास्त्रीय वर्णन सम्भवतः केवल वाराहपुराण में कुछ ही श्लोकों में मिलता है। वर्तमान में उनका एक मंदिर वाराणसी में है। वाराह पुराणानुसार वे भगवान् श्रीकृष्ण को संकेत देने वाली देवी हैं अतएव उनका नाम संकेतकेश्वरी भी है। वे ही जम्बुद्वीप पर हम समस्त शाकद्वीपीयों की कुलदेवी हैं। मग कुल में एक युवक विद्वान् हैं जिनका नाम पं. श्री मार्तण्डभैरव मिश्र जी है। उन्ही की प्रेरणा से इस स्तोत्र का प्राकट्य हुआ।
आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी
॥ अथ स्तोत्रम् ॥
पतङ्गसन्तानक्लिबप्रदात्रीं
कुलदृढ़े रक्षति सर्वयुक्त्या।
ददातु पादाम्बुजसेवनाय
सिद्धेश्वरि वारवरां नमामि॥१॥
सूर्यपुत्रों को सर्वसिद्धि देने वाली, कुल में दृढ़ता से स्थित होकर समस्त युक्तियों से उनकी रक्षा करने वाली सिद्धेश्वरि! आप तो अवसर देने वालीं हैं। आप मुझे भी अपने चरण कमल के सेवन का अवसर दें। आपको नमस्कार है।
विभूत्यखण्डाभृतपूर्वजानां
प्रभ्वी त्रयस्यागमपण्डितानाम्।
अतस्तथा देवि परे प्रसिद्धे
मुदाम्बुभृद्वर्षतु सिद्धिसङ्गे॥२॥
अखण्ड सिद्धियों से आपूरित तथा वेद, आगम शास्त्रों के पण्डित हमारे पूर्वजों की ईश्वरी होने के कारण ही आप प्रसिद्ध हैं। हे परे! सिद्धियों को सदा दान करने हेतु धारण करने वालीं! आप आनन्दरूपी मेघों की वर्षा करें।
मतिर्ममत्वेन हताऽसमर्था
स्मर्तृत्वहीना न तु विश्वगर्भे।
स्मृता जगच्छक्तिधरे वधार्हा-
-हते ममत्वं त्वयि वाञ्छितोऽहम्॥३॥
मेरी मति तो सांसारिक ममत्व (माया) से आहत तथा असमर्थ हो गई है किन्तु आप समस्त विश्व को अपने गर्भ में धारण करने वाली, ऐसी प्रसिद्ध हैं। आप तो स्मरणशक्ति से हीन हैं ही नहीं। समस्त संसार की शक्ति धारण करने वाली! दुष्टों का वध करने वाली! मैं आपसे ममत्व की कामना करता हूँ।
नमोऽमरामोदरुताननायै
अलक्तकायै स्तुतिभिर्स्तुतायै।
सुरद्विषासर्भणमण्डलाग्रे
सिद्धेश्वरि प्रह्लमुखा भवन्तु॥४॥
देवताओं को आनन्दित कर रही सी गर्जना करने वाली तथा आलता से पूर्ण चरणों वाली, स्तुतियों से भी स्तुत, आपको नमस्कार है। असुरों के मृत्युरूप खड्ग को धारण करने वाली! हे सिद्धेश्वरि! आप प्रसन्न हो जाइये।
सुततृषायामनुपूरयन्तीं
विद्यां बलं सिद्धिमुदाभरन्तीम्।
नुमो रतिं पादसरोजयुग्मे
सदा ग्लहित्रीमिवमर्वयामः॥५॥
सुत की इच्छा करने पर सुत देने वालीं, विद्या, बल, सिद्धि और आनन्द को देने वालीं तथा चरणों में रति मात्र को ग्रहण (करके संतुष्ट रहने वाली) करने वालीं, आपको हम नमस्कार करते हैं। आप हम सबको भी उसी प्रकार पूर्ण कर दें।
अजाश्रुतौ स्वेप्सितदिव्यदिव्य-
-स्वभावधर्त्रीमिवमोदकर्त्रीम्।
निजात्मजानां च निजाश्रितानां
मुदावृते नौमि सुविद्यमानाम्॥६॥
श्रुतियों में अजा, अपनी ही इच्छा से दिव्यातिदित्व स्वरूपों को धारण कर लेने वालीं, मानो अपने पुत्रों तथा अश्रितों को आनन्दित कर रहीं हों, ऐसीं सदा प्रसन्नमुद्रा में विद्यमान आपको नमस्कार करता हूँ।
श्रुतित्रयीणामुपदेवि प्राणे
तथाऽस्फुटे स्फूर्छमयेऽयि कृत्स्ने।
क्षयाय सर्गाय च दार्ढ्यसिद्धे
सिद्धेश्वरि पाहि सदाऽऽर्द्रचित्ते॥७॥
तीन छन्दस्वरूप वेदों की उपदेवी स्वरूपिणी! जीवों में प्राणवायु स्वरूपिणी! अव्यक्त होकर भी इस कृत्स्न में व्यक्त होने वाली! विनाश, उत्पत्ति तथा स्थिति के कार्यों को सम्पादित करने वाली सिद्धेश्वरी! हे सदा आर्द्रचित्त रहने वाली! आप सदा रक्षा करें।
ब्रजेन्द्रसूनोर्निजजन्मभूमौ
सङ्केतकेशीति कुलप्रहर्षे।
ममान्ववायाय पथप्रदर्शे
प्रतीक्षयाघप्रतितण्डमाने॥८॥
हे कुलानन्द देने वालीं! भगवान् श्रीकृष्ण की जन्मभूमि में आप ही संकेतकेश्वरी के रूप में ख्यातिलब्ध हैं (तदा सङ्केतकैः सा च सिद्धा देवी प्रतिष्ठिता। सिद्धिप्रदा भोगदा च तेन सिद्धेश्वरी स्मृता॥ – वाराहपुराणे १६०।४५)। मेरे कुल की भी पथप्रदर्शकरूप! अन्धकार को समाप्त करने हेतु उद्यत! आप हमें सदैव मार्ग दिखातीं रहें।
॥ इत्याचार्यश्रीकौशलेन्द्रकृष्णशर्मणा विरचितं श्रीसिद्धेश्वरीरञ्जनं सम्पूर्णम् ॥
जय मां सिद्धेश्वरी 🙏
जयतु
बहु समीचीनम्
धन्यवाद