प्रणेता – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी
(कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि)
शुभशितिकचकान्तिं दाडिमीपुष्पवर्णा-
-धरनलिनयमाक्षीं रुक्मशोभाकिरीटम्।
विधुजटितजटाभिर्जाटकं मङ्गलानां
नववरवधुयुग्मं पार्वतीशं नतोऽस्मि॥१॥
सुन्दर काले केशों की कान्ति, अनार के पुष्प के समान लाल ओष्ठ तथा कमल पुष्प के दो पंखुड़ियों के समान नेत्र, स्वर्ण मुकुट से परिपूर्ण जगदम्बिका एवं चन्द्रमा से युक्त जटा से मङ्गलत्वों को एकत्रित करने वाले भगवान् शिव। इस नए वरवधुयुग्म के सुन्दर स्वरूप को मैं नमन करता हूँ।
शिशिरकुलशरीरे नव्यमन्दारवासं
मृगरिपुमृगकृत्त्या सर्वमाङ्गल्यमूलम्।
विकसितकुचपीयूषाशयं चात्मजेभ्यो
नववरवधुयुग्मं पार्वतीशं नतोऽस्मि॥२॥
हेमखण्ड के समान श्वेत शरीर पर नए मंदार के पुष्पों के समान लाल वस्त्र से पूर्ण, पुत्रों हेतु अमृत के समूहों को धारण करने वाले विकसित स्तनों वाली जगदम्बा तथा हिरण को मारने वाले जन्तु के चर्म से जो समस्त मंगलों के मूल हैं, वे परमपिता। इस नए वरवधुयुग्म के सुन्दर स्वरूप को मैं नमन करता हूँ।
सुभगकनकहारां भृङ्गसंविद्विहारां
विकचपिशुनकण्ठैः कीरसङ्घातताराम्।
स्मरहरमृदुहासं नेत्रभोगं विलासं
नववरवधुयुग्मं पार्वतीशं नतोऽस्मि॥३॥
सुन्दर स्वर्ण हार से आभूषित तथा भृंगो (भक्तों) की बुद्धि में नित्य लीला करने वाली, शुकों के कुंकुमवर्ण वाले प्रफुल्लित कण्ठों के द्वारा गाई जाने वाली ध्वनि स्वरूपिणी जगदम्बिका और अपने मृदुल मुस्कान से नेत्रों को समस्त भोगविलास प्रदान कर देने वाले भगवान् शिव। इस नए वरवधुयुग्म के सुन्दर स्वरूप को मैं नमन करता हूँ।
परिनटश्रवपर्णे नासिकारत्नदीप्ति-
-श्चकितविबुधयोषास्रस्तनेत्राम्बुकान्तिः।
गिरिशमिहिररुच्युत्फुल्लपङ्केरुहाक्षी
मतिलषितसुवाञ्छालब्धरोमाञ्चिताङ्गी॥४॥
जगदम्बिका के कुण्डल चारो ओर नृत्य करते हैं। उनकी नासिका के आभूषण में जटित रत्न तो मानो (उनके सौन्दर्य से) चकित देवपत्निओं के नेत्रों से गिरते जल की कान्ति हैं। उनके नेत्र मानो भगवान् शिव रूपी सूर्य को देखकर उत्फुल्लित कमल के पुष्प हैं। उनका समस्त देह उनकी अभिलाषा की पूर्ति होने से रोमांचित सा हो रहा है।
करुणवरुणदृष्टीः पद्मगोत्रार्कवह्निं
नियतयतिजनेभ्योऽपाङ्गदृष्टीच्छुकेभ्यः।
वसति हिमशिलोच्चैः सर्वकृत्सर्वभर्त्ता
वनव्रजनिधिकन्यासेवितावाञ्छितोऽर्थः॥५॥
भगवान् शिव करुणा से सम्पन्न आकाश के समान नेत्रों को धारण करते हैं जो चन्द्र, सूर्य तथा अग्नि का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये कटाक्ष के इच्छुक यतियों की मुख्य कामना हैं। भगवान् शिव हिम के पर्वत में रहते हैं तथा वहीं से सब कार्यों को प्रतिपादित करने वाले तथा समस्त अभीप्सित को देने वाले हैं। (इस कारण) वे जलसमूह के अधिपति की कन्या लक्ष्मी द्वारा सेविता जगदम्बा के माध्यम से (पति के रूप में) वांछित हैं।
॥ इति श्रीकौशलेन्द्रकृष्णशर्माविरचितं श्रीपार्वतीश्वरसौन्दर्यवर्णनम् ॥