लेखक – पं. श्री महेश शर्मा
(भागवत प्रवक्ता, शिक्षक, लेखक)
घनश्याम के रंग मै श्याम भई,
जब राधा वल्लभ द्वार गई।
जग फंद लगे सब भूल अरी,
मस्तक रज धरि भ्रम दूर भई॥
जो प्रियतम संग की डोर बंधी।
अब युगल चरण से प्रीति मिली।
मम मीत सदा राधा वल्लभ।
सब हार के मै अब जीत गयी॥
कर जोड़ मनाकर भाव भरी।
गगरी भर लाल के द्वार खड़ी।
तब देख दशा प्रभु करुणा से।
मम नयन अश्रु बन छलक पड़ी॥
गद्गद हो कंठापूरित तन।
राधा के हे हिय प्राणरमण।
अब सदा प्रेम रस बरसे नित।
दे दो प्रियतम मन रहे मगन॥
तुम अश्रु बिंदु पर आते हो।
आकर फिर क्यूँ छिप जाते हो।
अनवरत रहे वह प्रेम नदी।
जिनमें जल बन रम जाते हो॥
हो कृपा दास पर हे मोहन।
तुम पर वारूं भंगुर जीवन।
कलियुग अब पाँव पसार रहा।
ले लो प्यारे हम तुम्हरी शरन॥