॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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   लेखक – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी
   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि)

मेद से भरा देह बड़ी समस्या है। आज से कुछ महीनों पूर्व हमें भी यह समस्या हुई थी। हमने मात्र 3 से 4 महीनों में ही 20 किलो के आसपास अपना वज़न कम किया। आज अपने इसी अनुभव को कई जनों के आग्रह पर यहाँ लिख रहे हैं। हमें जनवरी में फैटी लीव्हर की समस्या हुई। जिसमें डॉक्टर ने हमें अपने वज़न को कम करने की सलाह दी तथा उस हेतु कुछ दवाइयाँ लिखीं। हमने तहाँ ही उन्हे कह दिया कि हम कोई दवा नहीं लेंगे। क्योंकि शरीर से ममता तो निश्चित ही पतन का कारक है, तथापि देह को मूल्यरहित समझना ईश्वर प्रदत्त इस उपहार का अपमान ही है।

पहले तथा बाद में

तो… व्यक्ति जब जब देह को सुख देता है, इन्द्रियों को सुख देता है, तब तब देह उस व्यक्ति को दुःख की अनुभूति कराता है। जब जब देह को व्यक्ति प्रताड़ित करता है, तब तब वह देह उसको सुख देता है। ऋषिगण भी भगवत्प्राप्ति हेतु देह को ही प्रताड़ित किया करते हैं। देह को दुःख देकर आप सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं। जब व्यक्ति बहुंत स्थूल हो जाता है तब उसे अनेक समस्याएं घेर लेतीं हैं। जब वह वज़न कम करने का प्रयास करता है, तब वह अनेक जनों से, डॉक्टर से या यूट्यूब, टीवी आदि से उसकी विधि प्राप्त करने का प्रयास करता है। धीरे धीरे पाता है कि वह तो असफल होता जा रहा है। अंत में वह जैसे का तैसा रह जाता है। आवश्यकता वस्तुतः शरीर की भाषा को समझना है। यह समझना आवश्यक है कि आपके देह के प्रति उद्यमों से आपका शरीर कैसी प्रतिक्रियाएं दे रहा है। यदि इसका ज्ञान हो गया तब आप स्वयं से ही सारे मार्ग ढूँढ़ लेते हैं। आइये पहले समझें कि शारीरिक वसा या मेद कितने प्रकार की होती है।

मोटापा क्यों होता है

विविध प्रकार के अन्न के माध्यम से हमें शरीर के चलने हेतु इंधन की प्राप्ति होती है। एक प्रकार का शर्करा जिसे आधुनिक भाषा में ग्लूकोज कहते हैं, वह ही हमारे देह का मुख्य इंधन है। यह हर अन्न में जैसे चांवल, दाल, रोटी आदि में भी होता ही है। जब हम आवश्यकता से अधिक ईंधन ग्रहण कर लेते हैं तो हमारे शरीर में अतिरिक्त ईंधन को भविष्य के लिये संग्रहित करने की प्रणाली ही मोटापे के रूप में परिलक्षित होती है।

बाह्य मेद

शरीर के बाहरी सतह पर त्वचा से कुछ नीचे जिस वसा की स्थिति होती है, वह ही बाह्य मेद कहलाती है। इसका आप अपने उदर में अनुभव कर सकते हैं। यदि आपका पेट अत्यधिक लटका सा है, ढीला सा है तथा आप उसे अपने हाथों में पकड़कर खींच सकते हैं, तो वह मेद निश्चित ही बाहरी है। शरीर के अधिकांश भागों में मेद की यही अवस्था है। यह सुप्त होता है तथा इसका क्षरण बड़ा धीमा होता है।

बाह्य मेद की अधिकता तथा आन्तरिक मेद की न्यूनता

आंतरिक मेद

यह मेद मुख्यतः पेट में पाया जाता है। यह उदर की गहराई में संचित होकर अन्य अंगों को दबाता है तथा यकृत, हृदय तथा रक्तवाहिनियों में जमने लगता है। यह अत्यंत ख़तरनाक होता है किन्तु बहुंत ही शीघ्रता से इसका क्षरण होता है। किसी व्यक्ति का उदर ऊपर से नीचे तक अत्यधिक गोल, कठोर तथा सेव के समान है, ढीला नहीं किन्तु निकला हुआ है तो निश्चित ही उसके पेट में आंतरिक वसा अधिक है।

आन्तरिक मेद की अधिकता तथा बाह्य मेद की न्यूनता

वैसे एक मोटे व्यक्ति में दोनों मेद उपस्थित होते हैं किन्तु इनमें से किसी एक की अधिकता हो जाती है। जिस चर्बी की अधिकता अधिक होती है, उसके अनुरूप उसके उदर का आकार होता है जैसे चित्रों में प्रदर्शित किया गया।

वज़न कम कैसे करें

जैसे पहले ही कहा गया, कि अधिक ईंधन को संचित करना ही मोटापा है, तो अधिक ईंधन न लेकर उसकी मात्रा को कम करके, अधिक ईंधन ख़पत से, अनुपात में बदलाव करके इच्छित आकार को प्राप्त करना सम्भव है। क्यों न हम इस हेतु अपनी जीवन शैली में सुधार करें? हमको आहार तथा विहार में सुधार करना है। परिवर्तन भी ऐसा करें कि उसे जीवन पर्यन्त निर्वाह किया जा सके। क्योंकि यदि निर्वाह न कर पाएं तो जैसे वज़न कम होगा, तैसे ही बढ़ेगा। क्योंकि वज़न कम करना आसान है, उसे स्थिर रखना कठिन।

आहार में परिवर्तन

परिवर्तन करने से पूर्व तीन विषखाद्यों के नाम पढ़ लें। इनके नाम हैं, नमक, चीनी तथा मैदा। ये तीनों नित्य खाए जाते हैं किन्तु इन्हें विष ही समझना चाहिये। इनका औसत से अधिक सेवन सर्वनाश कारक होता है। मोटापे से हृदयरोग तक, समस्त रोग इनसे ही होते हैं।

हमें हमेशा ऐसा आहार करना चाहिये जिसे साबुत कहा जाता है। अर्थात् जिसमें छिलके होते हैं। वसा के सरल स्रोत जैसे आधुनिक शर्करा, चाँवल आदि का अमिश्रित सेवन हानिकर होता है। वैसे तो अति कहीं नहीं करना चाहिये। इन जैसे पदार्थों का स्वभाव आसानी से पचने का होता है। ये आँतों में शीघ्र ही पचकर शर्करा में परिणित हो जाते हैं तथा रक्त में मिलकर यकृत में उपयोग हेतु संचित हो जाते हैं। अनुपयोगी वसा बनकर जमने लगते हैं। ये जितनी जल्दी पचते हैं, उतनी जल्दी हमें पुनः भूँख लगती है तथा हम आवश्यकता से अधिक खा लेते हैं। चाँवल के साथ छिलके वाली दाल का मिश्रण करने से वह उपयुक्त हो जाता है। छिलके आसानी से नहीं पचते। चोकरयुक्त आटा भी उत्तम होता है। आपको खाने के लिये नहीं जीना अपितु जीने के लिये खाना है।

एक थाली के तीन भाग करें जो क्रमशः 50:25:25 के अनुपात में हो। उसमें से 50 वाले भाग में सलाद रखें, 25 वाले भाग में चाँवल तथा 25 वाले भाग में दाल। कुछ इसी प्रकार आप अपनी उपयुक्त स्थालिका का निर्माण करें। सलाद से खाना शुरू करें। मुट्ठी भर पंचमेवा (अन्य समय में) या एक चम्मच गाय का शुद्ध घी अवश्य लें। बार बार कुछ खाने से बचें। तेल आदि का उपयोग पूर्णतया बन्द कर दें। हमारे देह को सही वस्तुओं से ऊर्जा मिले। चाँवल से मिली 1000 संख्यात्मक ऊर्जा तथा मसालेदार मैदायुक्त आहार से मिली 1000 संख्यात्मक ऊर्जा भार में तो समान है किन्तु गुणवत्ता में बड़ी भिन्नता है।

खाने के प्रकारों जैसे सब्जियों, दालों में बदलाव करते रहें ताकि हर पोषक तत्व समान मात्रा में मिलता रहे।

अनात्यन्तिक उपवास (लंघन) Intermittent Fasting

जिस जिस समय हम कुछ भी नहीं खाते तब शरीर की स्थिति अपने संचित वसा को जलाने वाली हो जाती है। खाना खाते ही वसा के आवागमन में परिवर्तन हो जाता है। अतएव बार बार कुछ न कुछ खाना वसा के जलने में बाधक है। अतएव एक विधि निर्माण करें कि दिन में 16 घंटे प्रतिदिन उपवास रहें। हम यह कर सकते हैं कि शाम का आहार 6 बजे करके सुबह 10 बजे के बाद करें। इस बीच हमें शर्करा आदि को छोड़कर जल आदि का ही सेवन करना होगा। सुबह 10 से शाम 6 बजे के मध्य में उन 8 घंटो में आप चाहें तो 2 बार या 3 बार खाना खा सकते हैं।

विहार में परिवर्तन

हर स्वस्थ व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट का विचरण आवश्यक है। विचरण से हमारी संचित वसा विगलित होती है। प्रयास करें कि कम से कम 2 घंटे तेज़ी से चलें। इसके अतिरिक्त आपको आपके हर अंग की मांसपेशियों का उपयोग करते रहना है। नहीं करने से वह मांसपेशियाँ भी गलने लगेंगी। अतएव किसी मल्लशाला या अखाड़े में जाना प्रारम्भ कर दे।

इन क्रियाओं को करके आप अपने शरीर की भाषा को समझें। और कोई प्रश्न हो तो नीचे टिप्पणी लिखें। बहुंत शीघ्र आपको आदर्श मानव शरीर की प्राप्ति हो जाएगी। इसके बाद आपका युद्ध होगा कि इसे ऐसा ही कैसे रखें।

आदर्श वज़न की स्थिरता

प्रतिदिन अपना वज़न देखें। स्थिर बनाए रखने हेतु जो परिवर्तन किये, उसे थोड़े परिवर्तन तथा ढील के साथ यथावत् रखना फ़ायदेमंद होगा। कई जन खाना पूरी तरह बंद करके कुछ क्षणिक सफलता प्राप्त करके पुनः पूर्ववत् हो जाते हैं। हमारा वज़न 82 किलो से 62 किलो जनवरी से मार्च तक पहुंच गया था। तब से अब तक कुछ लोच के साथ तैसा ही स्थिर है। अनुभव ऐसे जनों का लें जिनके पास अनुभव हो। वज़न जल्दी कम हो कि धीरे, वापस नहीं आएगा यदि सही विधि हो तो।

-: दैनिक व्यवस्था विवरण :-

पहले से ही दैनिक व्यवस्था लगभग ठीक ही रही थी। तथापि हमने कुछ आंशिक परिवर्तन किये, जो निम्न हैं।

प्रातः 4 बजे से 11 बजे तक के कार्य

प्रातः उठकर स्नानादिक दैनिक क्रियाओं के उपरान्त सन्ध्यापूजनादिक स्वाचार, घर पर ही कुछ कसरत, व्यायाम, प्राणायाम, लगभग एक घंटे तीव्र वेग से चलना समस्त कसरत आदि कार्यों में 2 से 3 घंटा लगता था।

प्रातः 11 बजे से लेकर मध्याह्न 2 बजे तक

सर्वप्रथम प्रसाद ग्रहण (मुट्ठी भर पंचमेवा)। तदनन्तर भोजन (भोजन में क्या लेना चाहिये ऊपर लिखा ही है। भोजनोपरान्त तक्र का सेवन।)। भोजनोपरान्त तीस मिनट चलना। मध्याह्न सन्ध्या।

मध्याह्न 2 बजे से शायं 6 बजे तक

यह समय हमारे विभिन्न कार्यों हेतु है जिसमें लेखन, स्वाध्याय, यदाकदा गायन आदि भी हैं।

शायं 6 बजे से रात्रि 10 बजे तक

सन्ध्या। 7 बजे स्वल्पाहार भोजन (शायं भोजन में सलाद नहीं होता बल्कि दुग्ध को शयनपूर्व लेते हैं) तथा तीस मिनट पुनः चलना। पिताश्री तथा पत्नि के साथ भगवच्चरित्रविषयक कथाचर्चा, भगवच्चिन्तन, शयन।

इन समयों में जो अतिरिक्त समय बचता सो अतिरिक्त कार्यों के प्रतिपादन हेतु रहता जिसमें फेसबुक आदि मनोरंजक कार्य आते। अथानन्तर, वज़न कम होने के उपरान्त इसमें से भोजनोपरान्त चलना कम हुआ, प्रातःकाल व्यायाम कम हुआ तथा कसरत बन्द कर दिये। प्रातः विचरण 1 घंटे से आधा हो गया। ऐसे ही परिवर्तन हुए। भोजन की मात्रा किञ्चित् बढ़ा ली (शारीरिक भिन्नता के कारण हम अपनी मात्रा नहीं लिख रहे)। और हाँ… यदाकदा घर पर नहीं रहते तो इनमें से कुछ कार्य बाधित हो जाते हैं। ये सामान्य है। आप सबों के मस्तिष्क में कोई प्रश्न रहे तो टिप्पणी करें किंवा इस यहाँ से हमसे सम्पर्क करें।

इस प्रकार हमने जितनी हो सके सरल लोकभाषा में अपना अनुभव साझा करने का प्रयास किया। आशा है, यहाँ आपको कुछ सहयोग मिला होगा। वन्देमाधवप्रियाम्॥

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