॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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   लेखक – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी
   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि)

“माथ मटू हे मंजूर के पंख त कान के नाक के बात कहाँ हे।
आँख के आँजे सजे संगवारी त सुग्घर मा रति काम लजा हे।
डेरी के खांध म डेरा त आन म बंसरी तान के सान सजा हे।
‘कौशल’ राधा के राउत रूप बिसाख रगी म झड़ी बइहा हे॥
भागथें लैका सबो झन त बछरू मन टांग पुँछी बउरा हें।
राउत घेरत हें गोहड़ी चला देखा सबो ला सबो गोहरा हें।
गाँव के जे महतारी सबो फइका ल धरे लइका ओल्हिया हें।
‘कौशल’ घाम तफर्रा के बासर सूर्य मोहाए चले बरसा हे॥”

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