लेखक – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी
(कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि)
आज हम फेसबुक पर एक लेख पढ़ रहे थे। उसमें हमें एक टिप्पणी मिली। आक्षेपक ने लिखा था, “करपात्री जी तो रजस्वला होने से पहले ही कन्या के विवाह हेतु कहते हैं। कितना व्यंग्यात्मक है यह।” उसके उपरान्त ही एक व्यक्ति ने लिखा था, “आप कन्यादान करोगे कि स्त्रीदान?” आगे यह चर्चा अत्यंत विशाल रूप ले रही थी। हमारे मध्य कुछ ऐसी बातें भी होतीं हैं जिन्हें हमें केवल तर्क से सिद्ध करने का प्रयास नहीं करना चाहिये। वहीं कुछ बातें, जिनमें प्रमाण की आवश्यकता ही नहीं, उनमें व्यर्थ प्रमाण न देते हुए उसे तर्क से ही सिद्ध करने का प्रयास करना चाहिये। हम वहाँ देख रहे थे। न तो आक्षेपक के पास ही ऐसा कोई प्रमाण था जिससे सिद्ध हो सके कि करपात्रीजी के वाक्य अमान्य हैं, न ही करपात्री जी के पक्षधरों के पास ही करपात्री जी के वाक्यों का प्रमाण उपलब्ध था। यह बात तो हमें सदा माननी चाहिये कि कोई प्रज्ञावान् महात्मा यदि कुछ कह रहा है, तो निश्चित ही उसमें कुछ तो सत्यता अवश्य होगी। हमारे सनातन धर्म में ऐसे कई बुद्धिजीवी हैं कि जो सनातन धर्म के केवल उन्हीं विषयों पर विश्वास करते हैं जो उनके बुद्धि में जाता है। बांकी सबकुछ व्यर्थ ही है, ऐसा उनका कथन रहता है। ऐसे लोगों को मिश्रित ही मानना चाहिये जैसे एक व्यक्ति चादर भी चढ़ाए और घण्टा भी बजाए। ये मिश्रित हर सम्प्रदाय से कुछ न कुछ लेकर एक संकर मत बना लिये रहते हैं। कोई अबोधगम्य विषय को प्रक्षिप्त कह देता है तो कोई कुछ। हमने बडे़ बड़े आचार्यों को भी प्रक्षिप्तवाद की विक्षिप्तता में डूबते देखा है।
अधिक चर्चा न करते हुए आइये विषय पर चलें। हमारा पक्ष निश्चित ही श्री करपात्री जी के साथ है क्योंकि उनका वाक्य शास्त्रसम्मत है। हमारा रुझान किसी व्यक्तित्व की ओर नहीं, अपितु शास्त्र की ओर ही रहता है। जो शास्त्र की बात करता है, वह हमारा मित्र है। सबसे पहले तो यह जान लें कि कन्या और स्त्री में क्या अन्तर है।
कन्या तथा स्त्री में अन्तर
समान्य मान्यता यह है कि रजपर्व से पूर्व नारी को कन्या कहा जाता है रजोदर्शन के उपरान्त उसकी संज्ञा स्त्री हो जाती है। ठीक ही मान्यता है, किन्तु व्याकरण का मत इससे कुछ भिन्न है। एक श्लोक देखने योग्य है…
“कन्या कुमारी गौरी तु नग्निकानागतार्तवा। स्यान्मध्यमा दृष्टरजा तरुणी युवती समे।”
यहाँ कन्या कुमारी को भी “दृष्टरजा” के समान बताया गया है। यहाँ नग्निका की भी चर्चा है। किन्तु बताया यही गया है कि, “अदृष्टरजसं नारीं नग्निका ब्रुवते बुधाः।” वस्तुतः कन्या किसी भी स्त्री के लिये उपयुक्त है, ऐसा व्याकरणाचार्यों का मन्तव्य प्रतीत होता है। एक पंचकन्याओं के विषय में बड़ा प्रसिद्ध श्लोक है…
“अहल्या द्रौपदी कुन्ती तारा मन्दोदरी तथा। पञ्चकन्याः स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम्॥”
इस श्लोक में इन युवतियों को भी कन्या ही कहा गया। तथापि आज के युग में यही मानते हैं कि स्त्री रजस्वला होती है तथा नग्निका को कन्या कह देते हैं।
कन्या का विवाह कब हो जाये
हमारे साहित्य में “वृषली” का भी वर्णन है। वस्तुतः लोग शूद्रा को वृषली मानते हैं तो लज्जाजनक तथा अनुचित मान्यता है। वृषली का सीधा अर्थ व्यभिचारिणी है।
“स्ववृषं सा परित्यज्य परवृषे वृषायते। वृषली सा हि विज्ञेया न शूद्री वृषली भवेत्॥”
शास्त्र कहते हैं कि जिस कन्या का विवाह रजोदर्शन से पूर्व नहीं होता वह वृषली के समान है तथा उसके पिता को बालहत्या का दोष लगता है।
“पितृवेश्मनि या कन्या रजः पश्यत्यसंस्कृता। सा कन्या वृषली ज्ञेया…”
” पितृवेश्मनि या कन्या रजः पश्यत्यसंस्कृता। भ्रूणहत्या पितुस्तस्या सा कन्या वृषली स्मृता॥”
– नारायणस्मृति २४, उद्वाहतत्वम्
ऐसी उक्तियों से स्पष्ट संकेत है कि कन्या का विवाह रजोदर्शन से पूर्व ही हो जावे। बौधायन सूत्रों के सह से आपात स्थिति में रजदर्शन के तीन वर्ष बाद चौंथे वर्ष में विवाह होना ही चाहिये। पढ़ें,
“त्रीणि वर्षाण्यृतुमती काङ्क्षेत् पितृशासनम्। ततश्चतुर्थे वर्षे तु विन्देत सदृशं पतिम्॥”
– बौधायन ४|१|१५
किन्तु आज के युग में प्रशासन के कारण यह संभव नहीं। किन्तु क्या इससे यह बात अमान्य हो जावेगी? नहीं। प्रशासन ने यह नियम इस हेतु ही बनाया ताकि कन्याओं पर अत्याचार न हो। अतएव एक निश्चित आयु के उपरान्त ही कन्या का विवाह हो। पूर्वकाल में विवाहोपरान्त कन्या के रजोदर्शन पर उत्साह किया जाता था। नैहर से मामा तथा पिता आदि सब कन्या के यहाँ जाकर कन्या की शुद्धि के उपरान्त उसकी पूजा किया करते थे। आज भी कहीं कहीं दक्षिण भारत में इसका प्रचलन है। आनन्दादि रामायणों में जनकजी का अयोध्या आना भी वर्णित है।
अब प्रशासन के विरुद्ध कौन जावे? ऐसी स्थिति में आचार्यों के शरण में जाकर प्रायश्चित्त करने से ही रक्षा सम्भव है। इस लेख का उद्देश प्रशासन के प्रति जनसाधारण के मन में वैमनस्य अंकुरित करना नहीं अपितु आपको सत्य से अवगत कराना है।