॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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प्रकाशकगीताप्रेस गोरखपुर
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ब्रह्मवैवर्त की उक्ति है कि “देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते।” श्राद्ध हर मनुष्य हेतु अत्यन्त आवश्यक कृत्य है। वस्तुतः इसकी विधियाँ अनेक ग्रंथों में प्राप्य है। प्रस्तुत पुस्तक में इन्ही विधियों को एक ही स्थान में सुलभ कराने का प्रयास किया गया है।

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