लेखक | वाल्मीकि मुनि |
प्रकाशक | श्री वेंकटेश्वर प्रेस |
प्रारूप | |
आकार | 67.1MB |
फाइल संख्या | 1 |
विवरण –
रघुनाथगाथारसरसिक पाठकवृन्द! रामकथाका संसारमें शतकरोड़ विस्तार हैं उसमें बहुत कथा देवलोकमें विद्यमान हैं और बहुतसी कथा मर्त्यलोमें स्थित हैं, जिस प्रकार वाल्मी किजीने अपनी २४००० चौबीस सहल रामायणमें पुरुषकी प्रधानता कही है, उसी प्रकार इसमें प्रकृति (शक्ति) का प्रभाव वर्णन किया है। जिस प्रकार प्रकृति-पुरुषसे जगत् होता है उसी प्रकार राम-सीतासे पृथ्वीका भार उतारना इस ग्रन्थमें वर्णन किया है। राम सीता एक ही हैं इनमें कुछ भेद नहीं है।इस कारण जानकीका माहात्म्य भी रामहीका माहात्म्य है। यह सम्पूर्ण कथा अध्यात्मपर है इसमें रामकी बल और जानकीकी शक्ति प्रगटरूपसे वर्णन किया है। इस ग्रन्थके संस्कृत में होनेसे सर्व साधारणको इसका आशय विदित नहीं होता था, केवल कहीं कहीं बहुत संक्षेपसे इसकी चर्चा होती थी। इस कारण हरिभक्त महात्माओंके विनोदार्थ इसकी भाषाटीका कर सब प्रकारके स्वत्वसहित यह ग्रन्थ वैश्यवंशावतंस सेठ शिरोमणि “श्रीवेंकटेश्वर” स्टीम यंत्रालयाधिपति खेमराज श्रीकृष्णदास महाशयको कर दिया है।
– टीकाकार पं. श्री ज्वाला प्रसाद मिश्र