॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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श्लोकधारा

सुनीलहस्तचन्द्रहासहाटकस्थले कबन्–धहीनमुण्डमालिकामयामधर्म्यमन्थिकाम्।तथैव दुग्धसागरप्रभा प्रह्रीय ह्नाविकाइव प्रभा प्रपूरितां नुमोऽस्त्वनुग्रहार्णवाम्॥ – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी “नीले रंग के हाथों में चन्द्रहास तथा स्वर्णाभूषणों के स्थान,...
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