by पं. श्री कौशलेन्द्रकृष्णशर्मा | Aug 16, 2022 | Blogs, आचार्यश्री जी, स्वरचित संस्कृत काव्य
नवासान्द्राच्छादो विपिनतरुवल्ली वलयितालताहारं चारुं सजतिक्षितिवक्षस्थलगताम्।प्लवा भृङ्गार्यश्च मधुररववादेनसयुताऽऽ–गताश्चाराध्यायै स्तव इव सुराऽहो ऋतुमयः॥१॥ वन में लताओं पर नवीन तथा सुकोमल पत्ते छा गए हैं। जैसे सुन्दर लताहार को पृथ्वी अपने वक्ष पर धारण कर रही हो।...