॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवते जितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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वर्षाऋतुवर्णनम्

वर्षाऋतुवर्णनम्

नवासान्द्राच्छादो विपिनतरुवल्ली वलयितालताहारं चारुं सजतिक्षितिवक्षस्थलगताम्।प्लवा भृङ्गार्यश्च मधुररववादेनसयुताऽऽ–गताश्चाराध्यायै स्तव इव सुराऽहो ऋतुमयः॥१॥ वन में लताओं पर नवीन तथा सुकोमल पत्ते छा गए हैं। जैसे सुन्दर लताहार को पृथ्वी अपने वक्ष पर धारण कर रही हो।...
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