॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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चातुर्वण्य संस्कृति विमर्श

मुख्यपृष्ठ लेखकस्वामिश्री करपात्री जी महाराजभाषासंस्कृतप्रकाशकगौरीशंकर प्रेसप्रारूप*pdfआकार32.4MBफाइल संख्या1 विवरण – वर्तमान में ऐसे कई भ्रष्ट मत हैं जो वर्णव्यवस्था को जन्मगत नहीं, कर्मगत मानते हैं। किन्तु मानना भिन्न बात है, व्यक्ति मान कुछ भी सकता है किन्तु...
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