॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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लेखकभगवान् कृष्णद्वैपायन (वेदव्यास)
भाषासंस्कृत, हिन्दी
प्रकाशकगीताप्रेस गोरखपुर
आकार47.2MB + 46.7MB
प्रारूप*pdf
फाइल संख्या2

विवरण –

पुराणवाङ्मयमें श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण का अत्यन्त महिमामय स्थान है। पुराणोंकी परिगणनामें वेदतुल्य, पवित्र और सभी लक्षणोंसे युक्त यह पुराण पाँचवाँ है। शक्तिके उपासक इस पुराणको ‘शाक्तभागवत कहते हैं। इस ग्रन्थकै आदि, मध्य और अन्तमें सर्वत्र भगवती आद्याशक्तिको महिमाका प्रतिपादन किया गया है। इस पुराणमें मुख्य रूपसे परब्रह्म परमात्मा के मातृरूप और उनकी उपासनाका वर्णन है। भगवती आद्याशक्तिकी लीलाएँ अनन्त हैं, उन लीलाकाचाओंका प्रतिपादन ही इस ग्रन्थका मुख्य प्रतिपाद्य विषय है, जिसके सम्पक अवगाहनसे साधकों तथा भक्तोंका मन देवोंके पदापराणका अमर बनकर भक्तिमार्गका पथिक बन जाता है।

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