॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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   लेखक – आचार्यश्री कौशलेन्द्रकृष्ण जी
   (कथावक्ता, श्लोककार, ग्रंथकार, कवि)

हृदयस्थल के अंतः तल में
एक नाम नित गाता हूँ।
राम राम की धुन को सुनकर
शरणागत हो जाता हूँ।

देवालय में निज आलय में
निर्जन वन के मेघालय में।
लय में लय से मुक्त निलय में
राम नाम लय लाता हूँ।
हृदयस्थल के अंतः तल में
एक नाम नित गाता हूँ।

गन्धर्वों से मुक्त गान में
वीणा जैसी मधुर तान में।
बंधु संग के जीव यान में
राम धाम तक जाता हूँ।
हृदयस्थल के अंतः तल में
एक नाम नित गाता हूँ।

क्रोध हर्ष में शोक तर्ष में
धैर्य मर्ष के हर प्रकर्ष में।
संवेदों के नवल वर्ष में
राम नाम वर्षाता हूँ।
हृदयस्थल के अंतः तल में
एक नाम नित गाता हूँ।

दुःखी जहाँ हो उसके दुःख में
सुखी जहाँ हो उसके सुख में।
सुख दुःख से जो अन्तर्मुख में
राम राम को पाता हूँ।
हृदयस्थल के अंतः तल में
एक नाम नित गाता हूँ।

शत्रु संत में विश्व बन्ध में
मोह गन्ध में लोक फन्द में।
फँसा फँसा सा मूर्ख अन्ध मैं
राम रूप दर्शाता हूँ।
हृदयस्थल के अंतः तल में
एक नाम नित गाता हूँ।

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