॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवते जितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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भवानीसप्तकम्

भवानीसप्तकम्

कं कं केशेषु मेघेषु मनसिजबृसीं धूर्जटेः भूषितेशींकाशामाकाशवासामरुणकरुणया प्रोल्लसद्रुक्मरेखाम्।डं डं डं डं निनादेऽस्थिरनटनटितां दैत्यनाट्यं विभङ्गांतां वन्दे तन्त्रमातां जगदुदयकृतां दीध्यनायेशयोषे॥१॥ “जिनके मेघ स्वरूप केशों में आभूषणस्वरूप चन्द्रमा को स्वयं...
पार्वतीश्वरसौन्दर्यवर्णनम्

पार्वतीश्वरसौन्दर्यवर्णनम्

शुभशितिकचकान्तिं दाडिमीपुष्पवर्णा–धरनलिनयमाक्षीं रुक्मशोभाकिरीटम्।विधुजटितजटाभिर्जाटकं मङ्गलानांनववरवधुयुग्मं पार्वतीशं नतोऽस्मि॥१॥ सुन्दर काले केशों की कान्ति, अनार के पुष्प के समान लाल ओष्ठ तथा कमल पुष्प के दो पंखुड़ियों के समान नेत्र, स्वर्ण मुकुट से परिपूर्ण...
श्रीनृसिंहप्रपन्नस्तोत्रम्

श्रीनृसिंहप्रपन्नस्तोत्रम्

न मन्त्रं तन्त्रं वा विविधकुलयन्त्रागमशुची–न्न तत्वं मायायास्तवचरणदास्याश्च सचितः।सितास्तस्या वृत्याऽऽचरणपतिता योग्यविकलान योग्योऽहं देव तदपि नृमृगेद्रार्तिथयिषे॥१॥ न मैं मंत्र जानता हूँ, न तन्त्र जानता हूँ, न ही विविध प्रकार के यंत्र, वेद तथा...
कालिकालास्यम्

कालिकालास्यम्

असितवपुरिवाञ्जनां प्रमीता–जिरचरणामथरिप्रभाविदीप्ताम्।क्षणनुजशिरभित्तिशुक्तितृप्तांवसनविरागतनुं प्रणौमि नर्याम्॥१॥ कज्जल के समान काले शरीर वाली, मृत देह पर चरण रखी हुई तथा चारो ओर धधकती ज्वाला से दीप्त, कपाल में रक्त को भरकर पीती हुई तृप्ति प्राप्त करने वाली तथा...
श्रीगणपतिमदनस्तोत्रम्

श्रीगणपतिमदनस्तोत्रम्

शिवसङ्गमुदाङ्करतं सुरतंनटराजनटं नृतुयूथमुखम्।सुकृतेर्निकरं इतिख्यातिमयंस्मर रे इह चित्त गणाधिपतिम्॥१॥ “जो भगवान् शिव के गोद में बैठे बड़े आनन्दित हैं। जो कि नटराज के पुत्र तथा नटियों के समूह के भी मुख्य हैं। जो सुकृति के घर के रूप में प्रसिद्ध हैं, अरे चित्त!...
आदित्यहर्षणस्तोत्रम्

आदित्यहर्षणस्तोत्रम्

वैष्णवानां हरिस्त्वं शिवे धूर्जटिर्–शक्तिरूपो नतीनां कृतान्तः परम्।यो गणारूढ़निर्यूहद्वैमातुरःसः सुरेशो रविस्त्वं सदा स्तोचताम्॥१॥ वैष्णवों के आप ही हरि हैं, शाङ्कर परम्परा में आप ही शिव हैं तथा आप ही शक्तिस्वरूप हैं। आप ही समस्त नमस्कारों के परम भाग्य (गन्तव्य)...
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