॥ घृणिः ॥ ॐ नमो भगवतेऽजितवैश्वानरजातवेदसे ॥ घृणिः ॥

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लेखक – पं. श्री सूरज प्रसाद शर्मा
(सूखाताल, कवर्धा छत्तीसगढ़)

करिया कन्हैया नन्दलाल रे, मुरलिया तोर।
मधुर मधुर धुन बाजे, बसुरिया तोर। करिया कन्हैया…
मैं जिहाँ जिहाँ जाथौं, तैं उहाँ उहाँ जाथस।
मैं तोला नइ छिटकारौं काबर आघू पाछू आथस।
तोर मन मा भरे हे मलाल रे, मुरलिया तोर। मधुर मधुर…
तोर कोती ला देखथौं त काबर तैं दुरिहाथस।
मोर कोती ला देखके काबर, आँखी ला मटकाथस।
जिवरा के कर दे हे जंजाल रे, मुरलिया तोर। मधुर मधुर…
सुन्ना घर ला पाके भटके घर मा घुस जाथस।
संगी बेंदरा मन ला सब्बो माखन ला खवाथस।
लइका बन के आए हस बवाल रे, मुरलिया तोर। मधुर मधुर…
मुरली के अवाज सुन के जियरा हा बइहाथे।
सास ससुर सजन सबके सुरता हा भुलाथे।
कर दे ये मोर बारा हाल रे, मुरलिया तोर। मधुर मधुर…
मैं हा दही बेंचे बर जात रेहेंव मथुरा।
रद्दा मा घेर ले ये तैं करिया टूरा॥
दोहनी ला फोर दे ये दही ला गिराये।
संगी मन के संग मा दही लूट लूट खाए॥
लुगरा ला झींक के काबर मूड़ ला उघारे।
मोला गुसियाए देख के मटक के निहारे॥
करिया कन्हैया नन्दलाल रे, मुरलिया तोर।
मधुर मधुर धुन बाजे, बसुरिया तोर। करिया कन्हैया…

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